प्रतिनिधि, मेदिनीनगर
पलामू की जीवन रेखा मानी जाने वाली उत्तरी कोयल नदी आज बदहाली के कगार पर पहुंच चुकी है. शहर के कांदू मुहल्ला से लेकर बीसफुटा पुल तक नदी में जगह-जगह कूड़े-कचरे के ढेर और गंदे पानी की निकासी ने इसे नरक कुंड में तब्दील कर दिया है. पर्यावरण संरक्षण के बड़े-बड़े वादों और योजनाओं के बावजूद प्रशासन व सामाजिक संगठनों की उदासीनता से नदी की स्थिति दिन-ब-दिन और भी खराब होती जा रही है. अब तक नदी को अतिक्रमण और प्रदूषण से बचाने की दिशा में कोई भी ठोस या दीर्घकालिक कार्य योजना नहीं बन पायी है. शहर का संपूर्ण गंदा नाला और नालियों का पानी बिना किसी ट्रीटमेंट के सीधे कोयल नदी में छोड़ा जा रहा है, जिससे उसका जल पूरी तरह प्रदूषित हो चुका है. नगर निगम की ओर से सीवरेज सिस्टम विकसित करने की कोई ठोस पहल नहीं हुई है. गर्मी के मौसम में जब नदी का जलस्तर घट गया, तब शहर के दर्जनों बड़े नाले सीधे गंदगी नदी में डालते रहे, जिससे नदी तल में गंदगी की परत जम गयी. निगम प्रशासन ने नदी की सफाई के लिए कोई ठोस कार्रवाई नहीं की, बल्कि बरसात में गंदगी बह जाने के इंतजार में हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे. शहर के पहाड़ी मुहल्ला समेत कई स्थानों पर कोयल नदी की जमीन पर अवैध निर्माण जारी है. प्रशासन को इसकी जानकारी होने के बावजूद अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गयी है. पूर्व बैठकें, बिना कार्रवाई के खोखले वादे15 मई को तत्कालीन डीसी शशिरंजन की अध्यक्षता में जल स्रोतों को अतिक्रमण व प्रदूषण से मुक्त करने को लेकर बैठक हुई थी, जिसमें नगर आयुक्त मोहम्मद जावेद हुसैन ने 15 दिनों के भीतर कार्रवाई का वादा किया था. एक महीना बीतने के बाद भी कोई ठोस कार्य नहीं हुआ. इस गंभीर विषय पर सांसद और विधायक तक खामोश नजर आ रहे हैं. न तो निरीक्षण किया गया और न ही कोई जनसंवाद या दबाव प्रशासन पर बनाया गया.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

