मुकेश सिंह
पलामू के पांडू प्रखंड के झरना खुर्द निवासी विक्रमा रजक जिंदगी और मौत से जूझ रहा है
पांडू : मुख्यमंत्री जी मुझे बचा लीजिए, मैं जीना चाहता हूं. यह गुहार जिंदगी और मौत से जूझ रहे पलामू के पांडू प्रखंड के झरना खुर्द निवासी विक्रमा रजक ने लगायी है. बिस्तर पर पड़े 29 वर्षीय विक्रमा की दोनों किडनी खराब हो चुकी है. मां-पिता किडनी देने को तैयार हैं, लेकिन इसके प्रत्यारोपण में लगनेवाले पैसे पांच लाख 42 हजार रुपये उनके पास नहीं है. विक्रमा के पिता विंध्यांचल रजक और बड़े भाई रामाशीष रजक मजदूरी करते हैं. उन्होंने कहा कि हम लोगों के पास पेट भरने के पैसे नहीं हैं.
किसी तरह गुजर बसर करते हैं. ऐसे में विक्रमा का इलाज कैसे करा पायेंगे. अपनी आंखों के सामने उसे हर दिन तड़पता देखता रहता हैं. अब मुख्यमंत्री जी से ही आखिरी उम्मीद है. उन्होंने कहा कि गांव वाले चंदा कर पैसे जुटाते हैं, तो विक्रमा का हफ्ता में दो दिन डायलिसिस हो पाता है. पिता ने बताया कि विक्रमा अपने दो बच्चों व गर्भवती पत्नी के जीवनयापन के लिए प्राइवेट फैक्ट्री में काम करने बाहर चलागया था
दो माह पहले जव वह गांव आया तो उसकी तबीयत खराब हो गयी. मेदिनीनगर में जांच कराने पर पता चला कि उसकी दोनों किडनी खराब है.
ग्रामीणों के चंदे से होता है डायलिसिस : विक्रमा के पिता विध्यांचल रजक का कहना है कि अभी सप्ताह में दो दिन डायलिसिस कराना पड़ता है.
इसमें जो खर्च आते हैं, वह गांव के लोग चंदा कर देते हैं. लेकिन गांव वालों की अपनी सीमा है. जितना हो पा रहा है, मदद कर रहे हैं. मगर विक्रमा को जरूरत है बड़े राहत की. उसकी मां कबूतरी देवी का कहना है कि अब उसका बेटा विक्रमा ईश्वर के सहारे ही है. ईश्वर यदि चाहेंगे, तो उसकी जिंदगी बचेगी. आखिर एक गरीब कर क्या सकता है सिवा भगवान के सहारे रहने के.
गोल्डेन कार्ड होने पर भी अस्पताल प्रबंधन ट्रांसप्लांट को तैयार नहीं
विक्रमा के भाई रामाशीष रजक ने कहा कि लोगों के सहयोग से विक्रमा को लखनऊ के पीजीआइ अस्पताल किडनी ट्रांसप्लांट के लिए ले गये. वहां बताया गया कि ट्रांसप्लांट पर करीब 5.42 लाख रुपये खर्च आयेगा. उन्होंने अस्पताल प्रबंधन से कहा कि उनके पास मरीज का आयुष्मान भारत योजना का गोल्डेन कार्ड है, लेकिन अस्पताल प्रबंधन ने कार्ड को मान्यता देने से इनकार कर दिया. पैसे नहीं होने के कारण वह विक्रमा को गांव ले आये.