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ब्रेन मलेरिया से दो बहनों की मौत एक गंभीर, सदर अस्पताल में भर्ती
मेदिनीनगर : पलामू के नौडीहा प्रखंड के सरइडीह के रबीबुल्लाह अंसारी की दो बेटियों की मौत एक ही दिन हो गयी. कमरु निशा की उम्र तीन साल थी, जबकि रुखसाना की उम्र पांच साल है. रबीबुल्लाह की तीनों बेिटयां पिछले कई दिनों से बीमार थीं. स्थानीय स्तर पर झोला छाप डॉक्टर से ही वह अपने […]
मेदिनीनगर : पलामू के नौडीहा प्रखंड के सरइडीह के रबीबुल्लाह अंसारी की दो बेटियों की मौत एक ही दिन हो गयी. कमरु निशा की उम्र तीन साल थी, जबकि रुखसाना की उम्र पांच साल है. रबीबुल्लाह की तीनों बेिटयां पिछले कई दिनों से बीमार थीं.
स्थानीय स्तर पर झोला छाप डॉक्टर से ही वह अपने बच्चियों का इलाज करा रहा था. इसी बीच गुरुवार की रात कमरु व रुखसाना की मौत हो गयी. जबकि एक बच्ची की हालत गंभीर है. उसे इलाज के लिए सदर अस्पताल में भर्ती कराया गया है. रबीबुल्लाह अपनी तीसरी बेटी को तब इलाज कराने मेदिनीनगर लाये, जब उनकी दोनों बेटियों की मौत हो चुकी थी.
जानकारी मिलने के बाद विधायक सह सत्तारुढ़ दल के मुख्य सचेतक राधाकृष्ण किशोर बीमार बच्ची का हाल जानने मेदिनीनगर के सदर अस्पताल पहुंचे.परिजनों से उन्होंने बात की. यह जानना चाहा कि आखिर अस्पताल में पहले क्यों नहीं आये. इस पर उनके परिजनों का कहना था कि आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह इलाज कराने मेदिनीनगर आये. जब बुखार लगा, तो सोचा कि झोला छाप डॉक्टर से ही इलाज कराने से ठीक हो जायेगी, लेकिन ऐसी नहीं हो सका. तीसरी बेटी जिसका इलाज चल रहा था. उसके लिए एबी पॉजिटिव रक्त की जरूरत थी.
पता करने पर यह जानकारी मिली कि ब्लड बैंक में इस ग्रुप का खून ही नहीं है. इसके बाद युवा भाजपा नेता प्रशांत किशोर ने इस दिशा में पहल की. छतरपुर के युवा मोरचा के कार्यकर्ता सोनू गुप्ता ने आकर खून उपलब्ध कराया. उसके बाद उसका इलाज चल रहा है. डॉ अारपी रंजन ने बताया कि अस्पताल आयी बच्ची ब्रेन मलेरिया से पीड़ित है. विधायक श्री किशोर ने कहा कि रबीबुल्लाह की तीनों बेटियों को एक साथ ही बुखार लगा था.
संभवत: दो की मौत ब्रेन मलेिरया से हुई हो. उन्होंने एक ही दिन एक ही व्यक्ति के दो बेटियों की मौत के लिए लचर स्वास्थ्य व्यवस्था को दोषी ठहराया है. उनका कहना था कि सरइडीह में अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र है.
डॉक्टर नहीं बैठते. सरइडीह का प्रखंड मुख्यालय नौडीहा है, वहां भी डॉक्टर की व्यवस्था नहीं है. पूर्व में डॉक्टर के बैठने की व्यवस्था थी. लेकिन अब कोई डॉक्टर नहीं जाता. यदि डॉक्टर प्रखंड स्तर पर उपलब्ध होते, तो संभव था कि बच्चियों की जान बच जाती.
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