लोहरदगा : लोहरदगा जिला की गंगा-जमुनी तहजीब दूर-दूर तक फैली है. लोग यहां की मिसाल देते थे, लेकिन मुट्ठी भर लोगों ने लोहरदगा के माथे पर कलंक का टीका लगा दिया. आज लोहरदगा में कर्फ्यू लगा है. लोहरदगा कई मायने में सांप्रदायिक सौहार्द के लिए जाना जाता है. इसमें एक नाम आता है-हजरत बाबा दुखन शाह का मजार.
इस मजार पर सभी धर्मों के लोग आते हैं. उर्स के मौके पर बाबा के मजार पर चादर चढ़ानेवालों का तांता लगा रहता है. लोग यहां एक साथ मिल कर हजरत बाबा दुखन शाह से शांति और समृद्धि की दुआ मांगते हैं.
उर्स के मौके पर लोहरदगा ही नहीं, आसपास के जिले से लोग पहुंच कर यहां चादर चढ़ाते हैं. कोई भेदभाव नहीं रहता कि कौन हिंदू है कौन मुसलमान, ईद-दीवाली एक साथ मनानेवाले इस शहर में हर ओर प्रेम ही प्रेम नजर आता था. उर्स पर लगने वाले मेले में सभी वर्ग के लोग शामिल होते हैं. हिंदू की जमीन पर उर्स के मेला का झूला और दुकानें सजती हैं.
चादर की खरीदारी लोग मुसलमानों से करते है. यहां राम-रहीम का अद्भुत नजारा नजर आता है. हजरत बाबा दुखन शाह के सलाना उर्स पर तीन दिनों तक पूरा जिला एक अलग ही रंग में रंग जाता है. लोग बैंड बाजे के साथ अपने- अपने घरों से चादर चढ़ाने बाबा का मजार पहुंचते थे.
माना जाता है कि बाबा के मजार पर जाकर सच्चे दिल से मांगता है, वह निश्चित रूप से पूरी होती है, लेकिन आज हजरत बाबा दुखन शाह के शहर पर किसकी नजर लग गयी यह किसी को समझ में नहीं आ रहा है. लोहरदगा जिला में पिछले नौ दिनों से कर्फ्यू लगा है़ यहां रहनेवाले लोग काफी अमन-पसंद हैं. यहां के लोगों ने ऐसा मंजर कभी नहीं देखा था. मुट्ठी भर लोगों के कारण यहां का माहौल बिगड़ा और ऐसा बिगड़ा जिसे काबू करने के लिए कर्फ्यू लगाना पड़ा.