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उलगुलान महज विद्रोह नहीं, यह आदिवासी अस्मिता व संस्कृति बचाने का संग्राम था

प्रखंड के पूर्वी पंचायत अंतर्गत गुरीटांड़ गांव में स्थापित भगवान बिरसा मुंडा की आदमकद प्रतिमा पर माल्यार्पण कर लोगों ने उनकी 125वां शहादत दिवस पर उन्हें नमन किया.

फाेटो : 9 चांद 2 : माल्यार्पण कर भगवान बिरसा को नमन करते लोग. प्रतिनिधि चंदवा. प्रखंड के पूर्वी पंचायत अंतर्गत गुरीटांड़ गांव में स्थापित भगवान बिरसा मुंडा की आदमकद प्रतिमा पर माल्यार्पण कर लोगों ने उनकी 125वां शहादत दिवस पर उन्हें नमन किया. झामुमो के जिला उपाध्यक्ष शीतमोहन मुंडा व वार्ड सदस्य कर्मा मुंडा ने प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित कर दीप प्रज्ज्वलित किया. जिला उपाध्यक्ष श्री मुंडा ने कहा कि धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा का जन्म खूंटी जिले के उलीहातू गांव में हुआ था. छोटे से गांव से आकर एक आदिवासी युवा ने देश की आजादी की ऐसी हुंकार भरी कि अंग्रेजी शासन की नींव हिल गयी. ब्रिटिश सरकार के नियुक्त जमींदार आदिवासियों का शोषण करते थे. जल, जंगल, जमीन से उन्हें बेदखल कर रहे थे. ऐसे में भगवान बिरसा ने छोटी सी उम्र में ही उलगुलान छेड़ा. यह महज उलगुलान नहीं था. यह आदिवासी अस्मिता, स्वायत्तता व संस्कृति बचाने की लड़ाई थी. इस लड़ाई ने अंग्रेजों को भी घुटने पर ला दिया था. आखिरकार भगवान बिरसा के निधन की सूचना नौ जून को जेल से मिली. उनका निधन अब भी रहस्य बना है. महज 25 साल की उम्र में मातृभूमि के लिए शहीद होकर उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ मोरचा खोल दिये थे. भगवान बिरसा के संघर्ष व बलिदान के कारण उन्हें आज हम धरती आबा कहते है. मौके पर धनेश्वर उरांव, बबन मुंडा, सुरेश मुंडा, सुखदेव मुंडा, सुखलाल मुंडा, सनोज मुंडा, संतोष मुंडा, इनोद मुंडा, रंथू मुंडा, मकुल मुंडा, अंजन मुंडा, बालेश्वर मुंडा, मनोज मुंडा, सुखलाल मुंडा, सुखदेव मुंडा, इनोद मुंडा समेत कई लोग मौजूद थे.

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