लातेहार ़ देश की रक्षा करते हुए अपने दोनों हाथ गंवाने वाले वीर सैनिक अरुण केरकेट्टा आज प्रशासनिक उपेक्षा और लंबी लापरवाही के शिकार हैं. महुआडांड़ प्रखंड के विजयनगर के जरहाटोली निवासी अरुण ने बताया कि वर्ष 2007 में उनकी नियुक्ति भारतीय थल सेना की सेकेंड बटालियन, द बिहार रेजीमेंट में हवलदार (सैन्य संख्या 4287106 एच) के रूप में हुई थी. वर्ष 2012-13 में जम्मू के सियाचिन ग्लेशियर में ड्यूटी के दौरान गंभीर हादसे में उन्होंने अपने दोनों हाथ खो दिये और स्थायी रूप से दिव्यांग घोषित हो गये. अपने पुनर्वास के लिए अरुण ने 04 दिसंबर 2020 को जिला सैनिक कल्याण पदाधिकारी, लातेहार के माध्यम से आवेदन दिया था. इस पर सैनिक कल्याण कार्यालय ने अहीरपुरवा गांव में पांच एकड़ भूमि (खाता संख्या 50, प्लॉट संख्या 108, 109, 110 और 114) उनके नाम बंदोबस्त करने की अनुशंसा की थी, जिसे तत्कालीन उपायुक्त लातेहार ने मंजूरी भी दी. अनुमंडल पदाधिकारी महुआडांड़ और अंचल अधिकारी द्वारा स्थलीय जांच की प्रक्रिया भी पूरी कर ली गयी थी. इसके बावजूद आदेश पर पांच वर्षों से कोई कार्रवाई नहीं हुई. अरुण ने बताया कि वह दोनों हाथों से दिव्यांग हैं और दफ्तरों के चक्कर लगाना संभव नहीं है, लेकिन लगातार पांच वर्षों से उन्हें सिर्फ आश्वासन ही मिल रहा है. परिवार की आर्थिक स्थिति भी कमजोर होती जा रही है और गुजारा मुश्किल हो गया है. वर्ल्ड पैरालंपिक गेम्स में जीत चुके हैं गोल्ड : गौरतलब है कि दिव्यांग होने के बाद भी अरुण ने हिम्मत नहीं हारी. वर्ष 2018 में वर्ल्ड पैरालंपिक गेम्स में उन्होंने 400 मीटर दौड़ में गोल्ड और 1600 मीटर रिले में सिल्वर मेडल जीतकर देश का गौरव बढ़ाया. वर्ष 2019 में उन्हें साउथ अफ्रीका में आयोजित होने वाली वर्ल्ड मिलिट्री गेम्स के लिए भी चुना गया था, लेकिन कोरोना काल के कारण वे शामिल नहीं हो सके. उनकी उपलब्धियों को देखते हुए 2019 में बिहार रेजीमेंट सेंटर के तत्कालीन ब्रिगेडियर मनोज कुमार सहित वरीय अधिकारियों ने उन्हें ‘स्तंभ’ देकर सम्मानित किया था.
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