कोडरमा. नवरात्र के मौके पर जहां मां दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा हो रही है, वहीं कोडरमा जिले का एक ऐसा धार्मिक स्थान है, जहां मां के 10वें स्वरूप यानी की कन्या रूप की पूजा वर्ष भर होती है़ खास यह भी है कि यहां माता को श्रृंगार तो चढ़ाया जाता है, लेकिन सिंदूर चढ़ाना वर्जित है़ प्रसिद्ध धार्मिक स्थल मां चंचालिनी धाम जिला मुख्यालय से करीब 33 किलोमीटर दूर पहाड़ों और जंगलों के बीच कोडरमा-गिरिडीह मुख्य मार्ग पर नवलशाही थाना क्षेत्र में स्थित है़ श्रद्धालु कानीकेंद मोड़ से आठ किमी दूर जंगल में स्थित इस धाम में आसानी से पहुंच सकते हैं. यहां करीब 400 फीट की ऊंचाई वाली पहाड़ी के बीच मां चंचला देवी विराजमान हैं. यहां से थोड़ी दूर पर एक गुफा है. गुफा के अंदर भीत्ती चित्र में मां दुर्गा के साथ अलग-अलग रूपों का दर्शन होता है. घने जंगलों से सुसज्जित इस पहाड़ी के शिखर पर एक अन्य लंबी कंद्रा है, जहां भगवान भोलेनाथ का शिवलिंग है. पहाड़ के ऊपर तक जाने के लिए कुछ ही ऊंचाई तक सीढ़ी बनी है. इस जगह पर पहुंचने का रास्ता आसान नहीं है़ श्रद्धालु पाइप के सहारे रेंगते हुए इस पहाड़ पर चढ़ते हैं और भोले बाबा का दर्शन करते हैं. पहाड़ पर गुफा भी है, जहां पूजा की जाती है़ बताया जाता है कि 1956-57 में खेशमी राजवंश ने पहाड़ पर जाने के लिए सीढ़ीयों का निर्माण कराया था, लेकिन माता की इच्छा के कारण पूरी पहाड़ी तक सीढी नहीं बनायी जा सकी, इसलिए यहां आने वाले भक्त पहाड़ के पत्थरों व पाइप को पकड़-पकड़ कर चोटी तक पहुंचते हैं. यहां पूजा अर्चना करना एक चुनौती पूर्ण कार्य है फिर भी प्रतिवर्ष सैकड़ों लोग यहां पूजा करने आते हैं. यहां पशु बली प्रथा है, मगर पूजा-अर्चना में सिंदुर पूर्णत: वर्जित है. मान्यता है कि यहां कठिन परिश्रम कर पहाड़ की चोटी पर पहुंचकर पूजा-अर्चना करने से मन्नतें पूरी होती है. इतने चुनौतीपूर्ण तरीके से पूजा-अर्चना करने के दौरान आज तक किसी भी भक्त को किसी प्रकार का कोई कष्ट नहीं हुआ है. मन्नत मांगने के लिए धरना देती हैं महिलाएं: इस धाम की प्रसिद्धी की बड़ी वजह यह भी है कि यहां पर दूर-दूर से लोग पूजा अर्चना कर मन्नत मांगने तो आते हैं. महिलाएं अपनी मन्नत मांगने के लिए धरना भी देती हैं वैसे वर्ष भर यहां लोगों का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन नवरात्र के समय में यहां पूजा व दर्शन का खास महत्व है़ स्थानीय लोगों के अनुसार लगभग 200 वर्षों से अधिक समय से चंचालिनी धाम में पूजा हो रही है़ वर्ष 1648 के करीब जब देवीपुर के राजा इस घनघोर जंगल में शिकार खेलने आये हुए थे़ नीचे से ही इस पहाड़ी पर राजा को साक्षात शेर पर सवार मां दुर्गा का दर्शन हुआ था़ इसके बाद राजा को आभास हुआ कि यहां पहाड़ पर मां दुर्गा हैं, लेकिन उस समय पहाड़ पर चढ़ने का कोई साधन नहीं था़ इसके बाद राजा जगत नारायण सिंह ने लोगों और अपने पुरोहितों के साथ इस पहाड़ पर चढ़कर पूजा-अर्चना शुरू की़ कहा जाता है कि उस समय पूजा करने के दौरान ही साक्षात मां दुर्गा के स्वरूप में दो जोड़े शेर पूजा स्थल पर खड़े हो गये थे़ दर्शन के बाद वे स्वत: अपने आप चले गये. देवीपुर के राजा को मां चंचालिनी ने स्वप्न में आकर उक्त पहाड़ में वास कराने की बात कही थी़ इसके बाद राजघराने के द्वारा माता की पूजा-अर्चना शुरू की गयी. तब से यहां राजा के परिवार व स्थानीय लोगों द्वारा पूजा-अर्चना की जाती है़ धाम तक पहुंचने के लिए बन गयी है पक्की सड़क : एक समय था जब लोग इस बीहड़ जंगल में प्रवेश करने से भी डरते थे, लेकिन साल 1956 में झरिया की राजमाता सोनामति देवी ने इस मंदिर तक पहुंचने के लिए एक कच्चा रास्ता बनवाया था़ उस समय उन्होंने पहाड़ के कठिन रास्ते पर लोहे की दो भारी-भरकम सीढ़ियां लगवायी. हालांकि, श्रद्धालुओं की सुविधा को देखते हुए अब मुख्य सड़क से चंचाल पहाड़ी तक पक्की सड़क बनायी गयी है़ स्थानीय लोगों के मुताबिक झरिया के राजा काली प्रसाद सिंह को शादी के कई वर्षों तक संतान सुख नहीं मिल रहा था़ उस दौरान मां चंचालिनी के दरबार में मन्नत मांगने के लिए 1956 में अपनी पत्नी सोनामती देवी के साथ मां के दरबार में जंगल के बीच दुर्गम रास्तों से होकर पहुंचे थे. राजा काली प्रसाद सिंह को मां चंचालिनी के आशीर्वाद से पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी़ चंचालिनी धाम में जिला प्रशासन की पहल पर भी कुछ काम हुए हैं खासकर सीढ़ियों की दशा सुधरी है़ गलत उद्देश्य से आने पर भंवरे करते हैं आक्रमण : मान्यता है कि जो भी लोग गलत उद्देश्य लेकर चंचाल पहाड़ पर चढ़ाई करते हैं, उन पर भंवरे आक्रमण कर देते हैं. कहा जाता है कि गलत मंशा से पहुंचने वालों को भंवरा डंकमार मारकर लहूलुहान कर देते है़ं मां चंचालिनी के दरबार में श्रद्धालु बिना अन्न-जल ग्रहण किये ही पहाड़ पर चढ़ते हैं और माता की पूजा में प्रसाद के रूप में अरवा चावल, नारियल और मिश्री चढ़ाते हैं. पूजा स्थल से हटकर दीपक जलने वाली गुफा में ध्यान से देखने पर माता के सात रूप पत्थरों पर उभरे नजर आते हैं. यहां की देखरेख मां चंचालिनी विकास समिति के द्वारा की जा रही है़
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