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एक शिक्षक पर औसत से ज्यादा छात्रों का बोझ, राज्य में ऊर्दू शिक्षा का हाल भी बेहाल

राज्य में शिक्षा की स्थिति का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि राज्य में शिक्षकों की स्थिति क्या है. एक तो राज्य में शिक्षकों की कमी है अगर शिक्षक हैं भी तो उन पर विद्यार्थियों का बोझ ज्यादा है.

रांची : राज्य में शिक्षा की स्थिति का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि राज्य में शिक्षकों की स्थिति क्या है. एक तो राज्य में शिक्षकों की कमी है, अगर शिक्षक हैं भी तो उन पर विद्यार्थियों का बोझ ज्यादा है. केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ने राज्य सभा में दिये आंकड़े में बताया है कि झारखंड में 55.5 फीसदी सरकारी स्कूल और 80.2 फीसदी सरकार सहायता प्राप्त स्कूल ऐसे हैं, जो आरटीई के नियम के अनुसार शिक्षक छात्र अनुपात को पूरा नहीं करते हैं.

हैरान करने वाली बात यह है कि शिक्षक-छात्र अनुपात में कमी के मामले में झारखंड 36 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में दूसरे स्थान पर है जबकि पहले स्थान पर बिहार है. अगर नियमों की बात करें तो शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 में प्राइमरी और मीडिल स्कूलों के लिए छात्र-शिक्षक अनुपात प्राइमरी स्तर पर 30 विद्यार्थियों पर एक शिक्षक होने चाहिए. सिर्फ यही नहीं भाषा पढ़ाने वाले शिक्षकों की स्थिति खराब है.

राज्य में ऊर्दू पढ़ाने वाले शिक्षक किसी तरह सिलेबस पूरा कर रहे हैं. ऊर्दू शिक्षकों के पद सृजित पदों की संख्या के छह गुणा से भी कम है. हालांकि एक से पांच और छह से आठ तक के स्कूलों के लिए शिक्षकों की नियुक्ति तो हुई लेकिन ऊर्दू विषय के शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हुई.

जो शिक्षक ऊर्दू पढ़ा रहे हैं उन्हें भी सामान्य शिक्षकों की तरह काम करना पड़ता है अगर शिक्षकों की कमी रही तो उन्हें दूसरे विषय का भी क्लास लेना पड़ता है. ध्यान रहे कि राज्य में ऊर्दू के शिक्षकों के लिए 4401 पद सृजित हैं लेकिन शिक्षकों की संख्या 689 है. अगर जोड़ – घटाव करेंगे तो पायेंगे सृजित पदों के मुकाबले कार्यरत शिक्षकों की संख्या छह गुणा से भी कम है. इसके लिए सबसे रांची, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम, गढ़वा, हजारीबाग, गिरिडीह में सर्वाधिक पद सृजित हैं और इन जगहों पर ही शिक्षकों की संख्या सबसे कम है.

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