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समुद्र मंथन से निकले विष को शिवजी ने पान किया, नाम नीलकंठ पड़ा : कथावाचक

कथावाचक भागवत किशोर गोस्वामी ने श्रीमद्भागवत पुराण में वर्णित समुद्र मंथन, शिवजी का हलाहल पान, कूर्म अवतार आदि की सप्रसंग व्याख्या की. कथा से पूर्व भगवान की आरती कीर्तन प्रस्तुत किया.

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नाला. प्रखंड क्षेत्र के बंदरडीहा पंचायत के अंतर्गत सुन्दरपुर (मनिहारी) गांव में सात दिवसीय संगीतमयी श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ चौथे दिन जारी रही. कथावाचक भागवत किशोर गोस्वामी ने श्रीमद्भागवत पुराण में वर्णित समुद्र मंथन, शिवजी का हलाहल पान, कूर्म अवतार आदि की सप्रसंग व्याख्या की. कथा से पूर्व भगवान की आरती कीर्तन प्रस्तुत किया. कहा कि समुद्र मंथन की कथा का वर्णन पुराणों में मिलता है. अमृत प्राप्ति के लिए देवताओं और असुरों ने मंदराचल पर्वत और बासुकी नाग की सहायता से क्षीरसागर का मंथन किया. समुद्र मंथन के लिए ही भगवान विष्णु द्वारा कूर्म अवतार धारण किया गया. समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष को पीने के कारण भगवान शिव का कंठ नीला हो जाने के कारण उनका नाम नीलकंठ हुआ. कथावाचक ने कहा कि दैत्यों के राजा बलि ने इंद्र के राज्य पर चढ़ाई कर दी. देवताओं और दैत्यों के मध्य भयंकर युद्ध हुआ जिसमें देवता पराजित हुए. तीनों लोक में असुरों का साम्राज्य स्थापित हुआ, जिससे यज्ञ, धर्म, कर्म लोप हो गया. इस स्थिति से निपटने के लिए इंद्र ब्रह्माजी के पास गए और आपबीती बतायी. इंद्र, ब्रह्मा समेत सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए. भगवान विष्णु ने असुरों के साथ मित्रता करने एवं समुद्र मंथन की सलाह दी. उनके आदेशानुसार सभी देवता पाताल लोक राजा बलि के पास गए और समुद्र मंथन में अमृत के बारे में बताया. कहा कि जब समुद्र मंथन होने लगा तब मंदराचल पर्वत भारी होने के कारण समुद्र में डूबने लगा. उस समय भगवान ने उसके निवारण का उपाय सोच कर अत्यंत विशाल और विचित्र कच्छप (कछुआ) रूप धारण कर अवतार लिया और समुद्र के जल में प्रवेश कर मंदराचल को अपनी पीठ के ऊपर रख लिया. समुद्र मंथन के क्रम में हलाहल नामक अत्यंत उग्र विष निकला, जिसे शिवजी ने पान कर लिया. इस विष से शिवजी का कंठ नीला हो गया, जिससे उनका नाम नीलकंठ पड़ा. कथावाचक ने कई प्रसंग की सप्रसंग व्याख्या की. कथा के पश्चात श्रद्धालुओं के बीच प्रसाद वितरण किया गया.

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