बिंदापाथर. पुनसिया गांव में सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के तृतीय दिन कथा जारी रही. कथावाचिका सुमन किशोरी ने तीन श्लोक का वर्णन, सृष्टि का विस्तार, महाभारत प्रसंग, द्वारकाधीश कुंती स्तुति, परीक्षित श्राप, शुकदेव मुनि प्रसंग, भगवान कपिल देव मुनि प्रसंग, कमद चरित्र, पृथ्वी चरित्र, भरत चरित्र आदि ” प्रसंग का मधुर वर्णन किया. कहा कि श्रीमद्भागवत कथा से संबद्ध तीन संवाद हैं- सूतजी- शौनकजीका, सनकादि-नारद का एवं शुकदेव-परीक्षित का. इनमें प्रमुख संवाद शुकदेव-परीक्षित का है. शौनकजी सूतजी से पूछते हैं कि भक्ति, ज्ञान, वैराग्य की प्राप्ति का कोई सरल उपाय बताइए. कोई ऐसा साधन बताइए, जिससे इस कलिकाल के पापों से मुक्त होकर व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त कर सके. तब सूतजी ने कहा कि मनुष्य को समस्त पापों से मुक्ति दिलाकर मोक्ष प्रदान करने वाला शास्त्र श्रीमद्भागवत पुराण है. सूतजी ने शौनकजी से इसकी महिमा का बखान किया और कहा कि अब मैं आपको वह कथा सुनाता हूं, जो सनकादिक ऋषियों ने नारदजी को सुनायी थी. श्रीमद्भागवत कथा श्रवण से परीक्षित को मोक्ष की प्राप्ति हुई और कलियुग में आज भी इसका प्रत्यक्ष प्रमाण देखने को मिलता है. श्रीमद्भागवत कथा सुनने से प्राणी को मुक्ति प्राप्त होती है. सत्संग व कथा के माध्यम से मनुष्य भगवान की शरण में पहुंचता है, वरना वह इस संसार में आकर मोह-माया के चक्कर में पड़ जाता है. इसलिए मनुष्य को समय निकालकर श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण करना चाहिए. वहीं कथावाचिका पूज्या सुमन किशोरी ने धुव्र चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि संसार का जीव मात्र उत्तानपाद है. महाराज उत्तानपाद की सुनीति व सुरुचि नाम की दो पत्नियां थीं, जो न्याय-धर्म व महापुरुषों के आचरण से युक्त थीं. उस सुनीति के बेटे का नाम ध्रुव था और जिसकी लालसा सदा सर्वदा संसार के भोगों को भोगने में ही रहती थी. उस सुरुचि के पुत्र का नाम उत्तम था. उत्तम भगवान से विमुख रहने वाला व संसार के विषयों में आसक्ति से युक्त था. ध्रुव जो समस्त मार्गनिर्देशकों का मार्गदर्शक है, जो चल नक्षत्रों में स्थिर है, जिसका विवाह संस्कारादि शुभ कार्यों में स्मरण किया जाता है, जिसकी नक्षत्र मंडल परिक्रमा करता है तथा जो अविनाशी परमानंद स्वरूप है, वह मातृ-पितृ भक्त, निर्गुण सगुण भगवान का परम आराधक था. भगवान के परम-प्रियभक्त व देवर्षि नारदजी के शिष्य, अविचल धाम के अधिष्ठाता एवं संस्कारवान बालक ध्रुव की ही तो बात है. यदि तुझे पिता की गोद या पिता का सिंहासन चाहिए तो परम पुरुष भगवान नारायण की आराधना करके उनकी कृपा से मेरे गर्भ में आकर जन्म ले तभी राजसिंहासन की इच्छा पूर्ण होगी. ध्रुव भगवान नारायण के चरण कमलों की आराधना में लगे. मौके पर काफी संख्या में श्रद्धालु देर रात तक जमे रहे.
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