कुंडहित. प्रखंड के खाजूरी गांव स्थित बजरंगबली मंदिर परिसर में सात दिवसीय भागवत कथा जारी है. इसके तीसरे दिन शनिवार को कथावाचक वृंदावन के नितिन देव महाराज ने सती महारानी एवं भगवान शंकर व ध्रुव के चरित्र वर्णन किया. कहा कि सती महारानी के पिता दक्ष यज्ञ किये थे, जिसमें बिना निमंत्रण के ही सती यज्ञ में चल गयी थी. देवी सती साक्षात जगदंबा हैं और दक्ष का मतलब अहंकार है, जहां अहंकार होता है, वहां आदि शक्ति जगदंबा उनके घर नहीं रह सकती है. इसलिए उनका अगला जन्म हिमाचल राज्य मैना के गर्व से पुत्री बनी. मैं का अर्थ है अहंकार, ना का मतलब ना जहां अहंकार नहीं होता है. वह भगवान की भक्ति में रहती है. इसलिए वहां जगदंबा की प्रकट हुई. ध्रुव महाराज बाल्यावस्था से भगवान का भजन किया और भगवान की प्राप्ति हो गयी. ध्रुव महाराज जी में 5 वर्ष के अल्प आयु में इतना संस्कार भरा हुआ था कि उन्होंने भगवान की तपस्या करने के लिए जंगल के लिए चल गए थे. बाद में वह वृंदावन के मथुरा में जाकर भगवान का भजन किया और भगवान की प्राप्ति हो गयी. कथावाचक नितिन देव महाराज ने कहा संत एवं महात्मा साधु भगवान के भजन करने के लिए तीर्थ भूमि क्यों ढूंढते हैं. कहा कि तीर्थ भूमि में ऊर्जा होती है जो भजन करने से जल्दी ही भगवान की प्राप्त हो जाती है. इसलिए बालक ध्रुव की 5 वर्ष की आयु में उनके संस्कार अद्भुत थे. उन्होंने कहा कि माता-पिता का कर्तव्य है कि बच्चों को अच्छी संस्कार दें तथा गुरुजी के चरणों में बैठे, जितना गुरु और संतों का संगत करेंगे उतना ही भगवान के नजदीक जाएंगे और उतना ही संस्कारवान बनेंगे. महाराज के भजन और पाठ से श्रद्धालु झूमने में मजबूर हो गये. भागवत को सुनने के लिए झारखंड एवं पश्चिम बंगाल के श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ा है.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है