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सती के त्याग, शिव के क्रोध की हुई सप्रसंग व्याख्या

नाला. बंदरडीहा पंचायत अंतर्गत सुंदरपुर (मनिहारी) गांव में सात दिवसीय संगीतमयी श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ का आयोजन किया गया.

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नाला. बंदरडीहा पंचायत अंतर्गत सुंदरपुर (मनिहारी) गांव में सात दिवसीय संगीतमयी श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ का आयोजन किया गया. तीसरे दिन श्रीमद्भागवत पुराण के चतुर्थ स्कंध में वर्णित दक्ष यज्ञ कथा की सप्रसंग व्याख्या की गयी. पश्चिम बंगाल के नवद्वीपवासी कथावाचक भागवत किशोर गोस्वामी जी महाराज ने कहा श्रीमद्भागवत में दक्ष यज्ञ एक महत्वपूर्ण प्रसंग है. इस प्रसंग में सती के त्याग, शिव के क्रोध और यज्ञ के विध्वंस की कहानी का वर्णन है. कथावाचक ने बताया एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें सभी राजाओं सहित सभी देवताओं को आमंत्रित किया, जब दक्ष यज्ञ स्थल आए तो सभी राजा एवं देवता खड़े हुए, लेकिन शिव जी बैठे ही रहे, जिससे राजा दक्ष को अपमानित महसूस हुआ एवं शिवजी को अपमानित करने के लिए गालियां देने लगी. इस अपमान को शिवजी सह नहीं पाए और उस स्थान को त्याग कर कैलाश चले गए. कहा इस अपमान का बदला लेने के लिए राजा दक्ष ने फिर एक यज्ञ का आयोजन किया और उस यज्ञ में शिव जी एवं शिव की पत्नी सती को छोड़कर सभी देवी देवताओं को उस यज्ञ में आने का आमंत्रण दिया. सती को जब पता चला कि उनके पिता ने यज्ञ का आयोजन किया है. इसलिए उस यज्ञ में शामिल होने के लिए शिवजी को अपनी इच्छा प्रकट की. शिव जी ने कहा कि बिना निमंत्रण से पिता के घर तो दूर गुरु के घर भी नहीं जाना चाहिए, लेकिन सती ने जाने के लिए जिद्द करने पर जाने की आज्ञा दी. सती अपने पिता के यज्ञ में शामिल होने के लिए पहुंचे तो राजा दक्ष ने सती को काफी अपमानित किया और शिवजी के बारे में भला बुरा कहने लगा. अपने पिता के द्वारा भरी यज्ञ सभा में अपमान को सहन नहीं कर पाई और यज्ञ कुंड में आहुति दे दी. यह खबर जब शिव जी को मिला तो सती के देहत्याग को बर्दाश्त नहीं कर पाए और क्रोधित होकर अपने सिर के जटा छींड़कर फेंका जिससे वीरभद्र उत्पन्न हुआ. उसे राजा दक्ष के यज्ञ को नष्ट करने का आदेश दिया. वीरभद्र ने यज्ञ को विध्वंस कर दिया और यज्ञ को नष्ट कर दिया एवं राजा दक्ष का सिर काटा गया. कथावाचक ने कथा प्रसंग आगे बढ़ाते हुए कहा कि शिवजी तांडव नृत्य करते हुए यज्ञ स्थल पहुंचे तो देखा कि सती यज्ञ कुंड अपने को आहुति दे दी है. सती का अधजला शव को देखकर क्रोधित हो गए और सती की देह को कंधा में उठाकर पांडव नृत्य करते हुए संसार में घुमने लगे. इसे देख सभी देवता भगवान नारायण के दारस्थ हुए और इसे रोकने की प्रार्थना की नहीं पुरा संसार का विनाश हो जाएगा. भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र के माध्यम से सती की एक एक अंग काटने लगे. ये अंग 51 स्थानों में गिरा जिससे एक-एक शक्तिपीठ बने. बाद में शिवजी का क्रोध शांत हुआ और दक्ष को जीवित किया. दक्ष को बकरे का सिर दिया. राजा दक्ष को अपनी ग़लती का अहसास हुआ और शिवजी से क्षमा मांगी. कहा यह कथा हमें सिखाती है कि अहंकार और अपमान का परिणाम विनाशकारी हो सकता है. इसलिए हम सब को हमेशा विनम्र और सम्मान के साथ सभी के साथ व्यवहार करना चाहिए. कथावाचक गोस्वामी जी महाराज ने आगे ध्रुव चरित्र के बारे में सप्रसंग व्याख्या की. कथा स्थल में बड़ी संख्या में महिला पुरुष श्रद्धालु पहुंचे.और भागवत कथा श्रवण कर पुण्य के भागी बने. कथा के पश्चात श्रद्धालुओं के बीच प्रसाद का वितरण किया गया.

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