जमशेदपुर: पहले टाटा मोटर्स के एजीएम ब्रजेश सहाय की हत्या और फिर सोमवार को टाटा स्टील के मैनेजर रत्नेश राज पर फायरिंग की घटना ने जमशेदपुर के एक बार फिर ऑर्गेनाइज्ड क्राइम (संगठित अपराध) की ओर बढ़ने के संकेत दे दिये हैं.
पिछले चार महीने में टाटा स्टील और टाटा मोटर्स के तीन पदाधिकारियों (विपुल कुमार, ब्रजेश सहाय, रत्नेश राज) को कार पार्किग करने के ठीक पहले निशाना बनाया गया है. जब हमला किया गया तो पदाधिकारी खुद कार ड्राइव कर रहे थे और गाड़ी में अकेले थे. यानी पहले अपराधियों द्वारा रेकी की जा रही है और फिर ऐसे समय हमला किया जा रहा है, जब वे अकेले होते हैं, गाड़ी धीमी होती है और बच निकलने की कोई संभावना नहीं होती.
घटना का समय भी लगभग एक जैसा रहा यानी रात आठ से 10 बजे के बीच. पिछले दो हमलों में अपराधियों को सुनसान इलाकों का भी फायदा मिला. तीनों केस में पुलिस कुछ भी सुराग नहीं ढूंढ़ पायी है. ना ही हमले के कारण स्पष्ट हो पा रहे हैं. पुलिस पदाधिकारी भी यह मान रहे हैं कि ब्रजेश की हत्या और रत्नेश पर फायरिंग की घटना एक ही आपराधिक गिरोह द्वारा अंजाम दिये जाने की आशंका है. शहर खासकर कॉरपोरेट से जुड़े लोग दहशत में हैं.
इन मामलों में पुलिस रही खाली हाथ
– 23 नवंबर 2013 को बिष्टुपुर यूसी के बाहर टाटा स्टील अर्बन सर्विसेस के पदाधिकारी विपुल कुमार पर फायरिंग
– 10 दिसंबर 2013 को टाटा मोटर्स अस्पताल गेट के पास जादूगोड़ा के व्यापारी मुक्तिपदो कच्छप को गोली मारी
– 21 दिसंबर 2014 सिदगोड़ा अरोग्यम अस्पताल के पास सेंट्रो कार पर सवार लखन कुमार सिंह को चार गोली मारी
– 22 फरवरी 2014 को टाटा मोटर्स के एजीएम ब्रजेश सहाय की हत्या
कंपनी की सुरक्षा के भरोसे पुलिस
टाटा मोटर्स ने अपने एजीएम की हत्या होने के बाद अपने रिहायशी क्षेत्रों में अपने सुरक्षाकर्मियों की संख्या बढ़ा दी है. ऐसा जिला पुलिस के आग्रह पर भी किया गया है. जिला पुलिस ने साफ कह दिया कि सभी जगह पुलिसकर्मियों की गश्ती या तैनाती संभव नहीं है. जिला पुलिस कंपनी के निजी सुरक्षा गार्डो के सहयोग से चेकिंग अभियान तक चला रही है.
सीरियल क्राइम का इतिहास पुराना
शहर में सीरियल क्राइम का इतिहास पुराना रहा है. वर्ष 2009 के दिसंबर माह से जनवरी 2010 तक शहर में हुए सीरियल क्राइम के दौरान प्रतिष्ठित चिकित्सकों को निशाना बनाया गया था. सीरियल क्राइम को पंकज दुबे गिरोह अंजाम दे रहा था. उस समय के एसपी नवीन कुमार सिंह ने स्पेशल टीम गठित की थी, जिसने सीरियल क्राइम का उद्भेदन किया था.
दिसंबर 09 प्रथम सप्ताह में डॉ पीके मिश्र पर फायरिंग
17 दिसंबर 09 डॉ प्रभात कुमार के घर में घुस कर हत्या
2 जनवरी 10 को कीनन स्टेडियम के पास तुषार बागड़िया की हत्या
5 जनवरी 10 को मानगो में इंद्रपाल सिंह की हत्या
11 जनवरी 10 डॉ आशीष राय पर घर में घुसकर फायरिंग
इस तरह हो रहे हमले
गाड़ी पार्क करने के दौरान पदाधिकारी बन रहे निशाना
रात आठ से दस बजे का समय चुना जा रहा
पदाधिकारी के कार में अकेले रहने पर हमला
सुनसान इलाकों की तलाश कर हो रहे हमले
पहले रेकी, फिर बाइक सवार कर रहे हमले, हो जा रहे फरार
पुलिस खाली हाथ
टाटा स्टील के विपुल पर फायरिंग (23/11/13) मामले में पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला है. तीन युवकों को हिरासत में लेकर विपुल से पहचान करायी गयी थी, लेकिन उन्होंने नहीं पहचाना.
टाटा मोटर्स के एजीएम ब्रजेश सहाय हत्याकांड (22/02/14) में पुलिस कंपनी के अंदर सुराग मिलने की उम्मीद में जांच कर रही है. अब तक की पुलिस व सीआइडी जांच में हत्या का कारण स्पष्ट नहीं हो पाया है.
टाटा स्टील के रत्नेश पर फायरिंग (10/03/14) मामले में पुलिस को अब तक कोई पुख्ता वजह भी नहीं मिल सकी है. रत्नेश के होश में आने का पुलिस इंतजार कर रही है. मोबाइल डिटेल पर जांच हो रही है.
कंपनी की सुरक्षा के भरोसे पुलिस
टाटा मोटर्स ने अपने एजीएम की हत्या होने के बाद अपने रिहायशी क्षेत्रों में अपने सुरक्षाकर्मियों की संख्या बढ़ा दी है. ऐसा जिला पुलिस के आग्रह पर भी किया गया है. जिला पुलिस ने साफ कह दिया कि सभी जगह पुलिसकर्मियों की गश्ती या तैनाती संभव नहीं है. जिला पुलिस कंपनी के निजी सुरक्षा गार्डो के सहयोग से चेकिंग अभियान तक चला रही है.
अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण
शहर में अधिकतर अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है. राजनेताओं का हाथ होने की वजह से पुलिस अपराधियों पर हाथ डालने की हिम्मत नहीं जुटा पाती. अपराधी तक पहुंचने से पहले ही पुलिस पर राजनीतिक दबाव बनना शुरू हो जाता है. अभी हाल ही में जेल में बंद एक बड़े अपराधी को राजनीतिक संरक्षण मिल जाने के कारण उसके गुर्गे खुलेआम रैलियों, सभाओं और पब्लिक फोरम में नजर आने लगे. चार माह पहले ही खड़गपुर पुलिस ने आजसू नेता बंटी अग्रवाल को कंटेनर रोकवा कर गाड़ी लूट के मामले में रंगेहाथ गिरफ्तार कर जेल भेजा है. इससे पूर्व भी शहर में लूट-हत्या के कई मामलों में बंटी को पुलिस ने हिरासत में लेकर पूछताछ की, लेकिन राजनीतिक दबाव के कारण उसे छुड़ा लिया गया था.