जमशेदपुर: सरकारी जमीन या वन भूमि कीबंदरबांट का मामला महालेखाकार (सीएजी) के पास पहुंच गया है. इसके बाद उक्त मामले की गहन जांच शुरू हो गयी है. विभागीय अधिकारियों ने किस तरह सरकारी जमीन और राजस्व का नुकसान किया है, इसकी विस्तृत जानकारी हासिल करने की कोशिश शुरू हो चुकी है. इससे इस मामले में वैसे कई अधिकारियों की गरदन फंस सकती है, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इससे जुड़े रहे हैं. इस मामले की जांच के लिए जल्द ही एक जांच दल आने वाला है, जो मामले से संबंधित विभिन्न पहलुओं की जांच करेगी.
देवघर से भी बड़ा घोटाला सामने आया
मानगो से लेकर डिमना रोड तक की पूरी जमीन सरकारी और वन विभाग की है. उक्त जमीनों की रेंट रसीद काटने के बाद खारिज कर विधिवत नया दाखिल जमाबंदी करा दिया गया. इतना ही नहीं, उक्त जमीन को फिर बेच भी दिया गया. उक्त जमीन पर अब अट्टालिकाएं खड़ी हो चुकी हैं. इस मामले की जांच के लिए सरकार की ओर से प्रयास तेज कर दिये गये हैं. वन भूमि और सरकारी जमीन पर फ्लैट और भवन बनाये जाने का मामला को देवघर के भूमि घोटाले से भी बड़ा माना जा रहा है. इसमें करोड़ों के राजस्व से लेकर सरकारी जमीन की बंदरबांट भी की गयी है. ज्ञात हो कि देवघर भूमि घोटाले की सीबीआइ जांच चल रही है.
क्या है पूरा मामला
मानगो अक्षेस एरिया और आसपास के इलाके के वार्ड नंबर आठ के खाता नंबर 1849, वार्ड नंबर 9 के खाता नंबर 908 और वार्ड नंबर 10 के खाता संख्या 724, 725, 726 और 727 पर भवन एवं फ्लैट बनाने का नक्शा पारित किया गया. यही नहीं, उसकी रजिस्ट्री विभाग ने उसकी रजिस्ट्री भी कर दी. इसमें करीब 40 हजार प्लॉट हैं.
सरकारी जमीन का म्यूटेशन कैसे किया?
जमीन जब सरकारी रिकॉर्ड में दाखिल थी तो उसे खारिज कर उक्त जमीन को जमाबंदी कानून के तहत रैयत के नाम दाखिल कैसे करा दिया गया?
अगर इस संबंध में कोर्ट का कोई आदेश आया था तो उसे चुनौती क्यों नहीं दी गयी और उक्त जमीन पर महल कैसे खड़ा करने दिया गया?