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लोक आस्था के महापर्व छठ की शुरुआत कल से

लोक आस्था के महापर्व छठ की शुरुआत कल से व्रत का नहाय-खाय रविवार और खरना सोमवार कोमंगलवार को सांध्य और बुधवार को प्रात:कालीन अर्घ्य जमशेदपुर. भारत वर्ष में प्रत्येक दिवस का अपना अलग महत्व है तथा हर दिन देश में कोई न कोई व्रत-त्योहार मनाया ही जाता है. ऐसे ही व्रतों में से एक है […]

लोक आस्था के महापर्व छठ की शुरुआत कल से व्रत का नहाय-खाय रविवार और खरना सोमवार कोमंगलवार को सांध्य और बुधवार को प्रात:कालीन अर्घ्य जमशेदपुर. भारत वर्ष में प्रत्येक दिवस का अपना अलग महत्व है तथा हर दिन देश में कोई न कोई व्रत-त्योहार मनाया ही जाता है. ऐसे ही व्रतों में से एक है लोक आस्था व भगवान भास्कर की आराधना का चार दिवसीय महापर्व छठ (सूर्यषष्ठी व्रत). इसमें व्रती पूरे विश्व को ऊर्जा प्रदान करने वाले प्रत्यक्ष देव भगवान सूर्यदेव की आराधना करते हैं. पवित्रता व कठिन साधना का यह पर्व कार्तिक शुक्ल चतुर्थी तिथि को नहाय-खाय (कद्दू-भात) के साथ आरंभ होगा. पंचमी तिथि को खरना, षष्ठी को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्यदान और सप्तमी को उदीयमान सूर्य को अर्घ्यदान देने के बाद व्रत संपन्न होगा. यह व्रत पवित्रता, श्रद्धा व कठिन साधना के साथ ही शारीरिक, आत्मिक और वाचिक शुद्धता के साथ पूरा करना होता है. इस वर्ष इस व्रत का प्रथम संयम रविवार 15 नवंबर को नहाय-खाय के साथ आरंभ होगा, जो बुधवार 18 नवंबर को प्रातः उदीयमान सूर्यदेव को अर्घ्यदान के साथ संपन्न होगा. वैसे तो चतुर्थी तिथि शनि-रविवार की रात 1ः05 बजे से आरंभ हो रही है, जो रवि-सोमवार की रात 12ः48 बजे तक रहेगी. इस कारण छठ महापर्व के प्रथम संयम के लिए चतुर्थी तिथि हमें पूर्ण रूपेण 15 नवंबर को ही प्राप्त हो रही है. व्रत का द्वितीय संयम, खरना कार्तिक शुक्ल पंचमी तिथि को मनाया जाता है. पंचमी तिथि हमें सोमवार 16 नवंबर को रात्रि 12ः14 बजे तक मिल रही है. खरना, चूंकि प्रदोष काल में किया जाता है, जिसके लिए व्रतियों को पर्याप्त समय मिलेगा. व्रत का प्रथम अर्घ्यदान मंगलवार 17 नवंबर को है. इस दिन षष्ठी तिथि रात्रि 11ः07 बजे तक है और उदीयमान सूर्यदेव को अर्घ्यदान बुधवार 18 नवंबर को है. इस दिन सूर्योदय से पूर्व ही सप्तमी तिथि आरंभ हो जा रही है, जो बुधवार रात 9ः38 बजे तक रहेगी. अतः व्रती अपनी सुविधानुसार व्रत का पारण कर सकते हैं. वैसे ध्यान रहे कि उदीयमान सूर्यदेव को अर्घ देकर ही व्रत का पारण करने का विधान है.

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