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ढिबरी युग में जीवन बिता रहे हैं ग्रामीण

सांसद, विधायक व जिले के आलाधिकारी से गुहार लगा-लगा कर थक चुके हैं ग्रामीण ग्रामीणों ने आने-जाने के लिए हद तक श्रमदान कर बनायी है सड़क चरही : प्रखंड में आज भी कई वैसे गांव व मुहल्ले हैं, जहां बिजली, पानी, सड़क, स्वास्थ्य व शिक्षा की सुविधा नसीब नहीं हो सकी है. इसका एक उदाहरण […]

सांसद, विधायक व जिले के आलाधिकारी से गुहार लगा-लगा कर थक चुके हैं ग्रामीण

ग्रामीणों ने आने-जाने के लिए हद तक श्रमदान कर बनायी है सड़क
चरही : प्रखंड में आज भी कई वैसे गांव व मुहल्ले हैं, जहां बिजली, पानी, सड़क, स्वास्थ्य व शिक्षा की सुविधा नसीब नहीं हो सकी है. इसका एक उदाहरण चुरचू प्रखंड के अति संवेदनशील क्षेत्र के चुरचू पंचायत के लुकुइया गांव है. इस गांव में 26 घरों में लगभग 100 लोग निवास करते है. गांव में आजादी के इतने वर्षों बाद भी बिजली नहीं पहुंची है. गांव के लोग आज भी ढिबरी युग में जीने को विवश है. गांव के लोग आज भी सात नदी पार करके प्रखंड मुख्यालय आते-जाते है.
गांव जाने के रास्ते की हालात इतनी खराब है कि पैदल चलना भी दूभर है. सड़क निर्माण को लेकर कई बार जिला प्रशासन से लेकर जन प्रतिनिधि तक गुहार लगा चुके है, लेकिन किसी भी अधिकारी व जनप्रतिनिधि ने इस गांव के विकास के लिए किसी प्रकार का प्रयास नहीं किया. अंत में ग्रामीणों ने आने-जाने के लिए बहुत हद तक श्रमदान कर सड़क बनाने का काम किया. ताकि राहगीरों को आवागमन करने में कठिनाइयों का सामना नहीं कम करना पड़े. गांव में पेयजल, स्वास्थ्य व शिक्षा समेत अन्य सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हैं.
पगडंडी के सहारे आज भी आते-जाते हैं लोग: जंगली पगडंडी के सहारे आज भी लोग आने-जाने को मजबूर है. हजारीबाग के तत्कालीन उपायुक्त रवि शंकर शुक्ला के प्रयास से लुकैया गांव में पेजयल की व्यवस्था करायी गयी थी. गांव में जलमीनार के माध्यम से पेयजल मिलता है. लेकिन लुकैया गांव में जो विकास कार्य होना चाहिए.
विकास नहीं के बराबर घने जंगल में बसे गांव वासी को सड़क नहीं रहने से बराबर भय बना रहता है. ग्रामीणों ने बताया कि चुनाव के वक्त अगर किसी का मन किया, तो लोग झांकने आ जाते हैं. गांव में बिजली, सड़क, सिंचाई समेत अन्य सुविधा की मांग करने वालों में विजय गंझू, दिनेश गंझू, राजू गंझू, प्रदीप गंझू, विनोद गंझू, राजेंद्र गंझू, संजय गंझू आदि शामिल हैं.

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