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नये साल में घूमने-फिरने के साथ प्राचीन धरोहर देखना है तो गुमला के टांगीनाथ धाम आइये, जानें यहां की खासियत

jharkhand news: गुमला के टांगीनाथ धाम में कई पुरातात्विक और ऐतिहासिक धरोहर है. यह धार्मिक के अलावा पर्यटक स्थल के रूप में प्रसिद्ध है. नये साल में घूमने-फिरने को सोच रहे हैं, तो टांगीनाथ धाम आ सकते हैं. यहां काफी संख्या में शिवलिंग भी देखने को मिल सकता है.

Jharkhand news: छत्तीसगढ़ राज्य से सटे झारखंड के गुमला जिला अंतर्गत डुमरी प्रखंड के मझगांव में टांगीनाथ धाम है. यहां कई पुरातात्विक और ऐतिहासिक धरोहर है. आज भी इन धरोहरों को देखा जा सकता है. यहां की कलाकृतियां और नक्कासी देवकाल की कहानी बयां करती है. साथ ही कई ऐसे स्रोत हैं, जो वर्तमान पीढ़ी को 7वीं और 9वीं शताब्दी में ले जाता है. यह धार्मिक के अलावा पर्यटक स्थल के रूप में विश्व विख्यात है. धार्मिक कार्यक्रम हो या फिर नववर्ष की बेला. यहां लोग दूर-दूर से घूमने और धर्म-कर्म में भाग लेने आते हैं. गुमला से 70 किमी दूर डुमरी प्रखंड के टांगीनाथ धाम में साक्षात भगवान शिव निवास करते हैं. सैलानियों को यहां धर्म-कर्म के अलावा सुंदर और मनमोहक प्राकृतिक दृश्य देखने को मिलेगा.

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नये साल में घूमने-फिरने के साथ प्राचीन धरोहर देखना है तो गुमला के टांगीनाथ धाम आइये, जानें यहां की खासियत 4
फिर दोबारा खुदाई नहीं हुई

वर्ष 1989 में पुरातत्व विभाग ने टांगीनाथ धाम के रहस्य से पर्दा हटाने के लिए अध्ययन किया था. यहां जमीन की खुदाई की गयी थी. उस समय भारी मात्रा में सोना और चांदी के आभूषण सहित कई बहुमूल्य समान मिले थे. लेकिन, कतिपय कारणों से खुदाई पर रोक लगा दिया गया. इसके बाद टांगीनाथ धाम के पुरातात्विक धरोहर को खंगालने के लिए किसी ने पहल नहीं की. ऐसे खुदाई में जो बहुमूल्य सामग्री मिले थे. उसे अभी भी डुमरी थाना के मालखाना में रखा गया है.

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टांगीनाथ धाम में क्या देंखे

टांगीनाथ धाम में यत्र-तत्र सैंकड़ों की संख्या में शिवलिंग है. यह मंदिर शाश्वत है. खुद विश्वकर्मा भगवान ने टांगीनाथ धाम की रचना किये थे. यहां की बनावट, शिवलिंग व अन्य स्रोतों को देखने से स्पष्ट होता है कि इसे आम आदमी नहीं बना सकता है. त्रिशूल आज भी साक्षात है. त्रिशूल जमीन के नीचे कितना गड़ा है. यह कोई नहीं जानता है. जमीन के ऊपर स्थित त्रिशूल के अग्र भाग में कभी जंग नहीं लगता है. इसके अलावा यहां कई प्राचीन धरोहर हैं जो बरबस हमें इतिहास में ले जाता है. आसपास का माहौल खुशनुमा है. यहां झरना से पानी गिरता है, जो स्वच्छ है. यहां नहाने से कई रोगों से मुक्ति भी मिलती है.

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कैसे जायें और कहां ठहरें

यहां तक जाने के लिए सुगम सड़क है. नदी में पुल बन गया है. ठहरने की कोई व्यवस्था नहीं है. इसके लिए सैलानियों को गुमला में ठहरना होगा. यहां जाने के लिए गुमला से सुबह छह बजे निकले, तो सुबह आठ बजे तक पहुंच जायेंगे. पानी की समुचित व्यवस्था है. यहां शाम चार बजे तक रुका जा सकता है. उसके बाद समय का ख्याल रखते हुए वापस लौट जाये.

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डुमरी प्रखंड से 10 किमी
गुमला शहर से 75 किमी
सिमेडगा से 160 किमी
लोहरदगा से 125 किमी
रांची से 175 किमी दूर है

रिपोर्ट: जगरनाथ, गुमला.

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