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पढ़े-लिखे युवाओं ने नौकरी की राह छोड़ आदिवासी समाज को समर्पित किया जीवन

आदिवासी दिवस पर विशेष. गुमला के चार युवाओं का अनोखा मिशन, समाज और संस्कृति की सेवा

गुमला. यह गुमला के चार आदिवासी युवकों की कहानी है. चार युवकों में कोई खिलाड़ी, तो कोई सैनिक तैयार करने में लगा है. वहीं कोई आदिवासी समाज को जागरूक कर रहा हैं. चारों युवक पढ़े-लिखे हैं. उनके पास अच्छी डिग्री है, जिससे वे नौकरी कर सकते हैं. परंतु ये लोग अपना जीवन समाज को समर्पित कर दिया है. इन युवकों में गुमला के जीतेश मिंज व देवेंद्र लाल उरांव आदिवासी समाज को जागरूक कर रहे हैं. नेल्सन भगत लक्ष्य फिजिकल एकेडमी के माध्यम से सेना व पुलिस में बहाली की तैयारी करा रहा है. इसमें कई युवक सैनिक भी बन चुके हैं. नेल्सन भगत आदिवासी समाज को भी गांव-गांव जाकर जागरूक कर रहा है. वहीं कृष्णा उरांव गुमला में खेल प्रतिभाओं को निखारने में लगा है. कई फुटबॉल खिलाड़ियों को कृष्णा उरांव ने तैयार है, जिसमें कई खिलाड़ी राज्य से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचे हैं.

आदिवासी समाज को जागरूक कर रहे हैं जीतेश मिंज

गुमला शहर के शांति नगर निवासी जीतेश मिंज ने इंजीनियरिंग की है. साथ ही वह अलग-अलग कई भाषाओं के भी जानकार हैं. परंतु अभी जीतेश मिंज आदिवासी समाज को जागरूक कर रहे हैं. वर्तमान पीढ़ी को आदिवासी समाज की संस्कृति, परंपरा, वेशभूषा, रहन-सहन के संबंध में बताते रहते हैं. कई अवसरों पर वह आदिवासी समाज को जागरूक करते नजर आता है. कहीं अगर कुछ व्याख्यान देना हो, तो जीतेश मिंज को आमंत्रित किया जाता है. जीतेश का कहना है कि वर्तमान समय में युवा पीढ़ी में आधुनिकता का भूत सवार हो गया है. वे लोग अपनी संस्कृति व परंपरा को भूलते जा रहे हैं. इसलिए मैं अपनी और से प्रयास कर रहा हूं कि उन्हें जागरूक कर आदिवासियत को जिंदा रख सकूं.

नेल्सन भगत ने ट्रेनिंग देकर कई युवकों को बनाया सैनिक

गुमला शहर के नेल्सन भगत लक्ष्य फिजिकल एकेडमी चलाते हैं. एकेडमी में सैकड़ों युवक-युवती हैं. इसमें अधिकांश आदिवासी समाज व दूर गांव के युवा हैं. इन युवाओं को नेल्सन सुबह को सैनिक व पुलिस में भर्ती की ट्रेनिंग देता है. इसके बाद दोपहर में वह अलग-अलग समय में युवाओं को पढ़ाते भी हैं, जिससे युवा वर्ग सेना या पुलिस में जा सके. उनके प्रयास से कई युवा आज सेना में हैं. इतना ही नहीं नेल्सन वर्तमान में आदिवासी समाज को जागरूक करने के लिए रात को किसी ने किसी गांव में सभा करते हैं, जिससे गांव के लोगों को आदिवासी समाज का हकीकत से रूबरू कराते हुए उन्हें मजबूत कर सके. सोशल मीडिया के माध्यम से भी नेल्सन आदिवासी समाज को एकजुट करने में लगे हुए हैं.

प्राचीन परंपराओं को जीवित रखने में लगे हैं देवेंद्र लाल उरांव

गुमला के रायडीह प्रखंड निवासी देवेंद्र लाल उरांव कई सालों तक केओ कॉलेज गुमला में इंटर के छात्रों को पढ़ाया. परंतु कॉलेज में इंटर की पढ़ाई बंद होने के बाद अब वे युवाओं को मार्गदर्शन कर रहे हैं. कई अवसरों पर युवाओं को पढ़ाते भी हैं. इनमें सबसे अच्छी खासियत यह है कि ये गांव-घर में घूम-घूम कर आदिवासी समाज को एकजुट करने व जागरूक करने में लगे हैं. देवेंद्र लाल उरांव का कहना है कि आज आवश्यकता है कि हम अपनी नयी पीढ़ी को यह बतायें कि आदिवासी होना गर्व की बात है. हमें अपनी बोली अपने रीति-रिवाज और अपने पूर्वजों की वीर गाथाओं को नहीं भूलना चाहिए, साथ ही सरकार और समाज दोनों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विकास के रास्ते में आदिवासी समुदाय पीछे न छूटे.

खिलाड़ियों को तराशने में लगे हैं कृष्णा उरांव

गुमला के कृष्णा उरांव खेल संयोजक हैं. परंतु जब आदिवासी की बात आती है, तो यह सबसे आगे खड़े रहते हैं. खेल से जुड़े होने के कारण गुमला के फुटबॉल खिलाड़ियों को तराशने में लगे हैं. उनके मार्गदर्शन से आज कई खिलाड़ी बेहतर मुकाम पर हैं. कृष्णा का कहना है कि आदिवासी दिवस यह दिन न केवल हमारे अधिकारों की याद दिलाता है, बल्कि हमारी समृद्ध परंपरा, संस्कृति और संघर्षों को भी उजागर करता है. आदिवासी समाज ने सदियों से प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर जीवन जीने की कला सिखायी है. जंगल, जल, जमीन इनसे उसका नाता सिर्फ संसाधनों तक सीमित नहीं, बल्कि आत्मा का संबंध रहा है. आदिवासी दिवस केवल उत्सव नहीं है. यह हमारी पहचान, अधिकार और अस्मिता का प्रतीक है.

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Prabhat Khabar News Desk
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