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:8::::: अंधेरी गलियों में उजाला लाने की जरूरत

:8::::: अंधेरी गलियों में उजाला लाने की जरूरत स्व कार्तिक उरांव की जयंती पर विशेष28 गुम 3 कार्तिक उरांव का फाइल फोटोदुर्जय पासवान, गुमलाखुशी का दामन न छूटे. खेत में हरियाली रहे. हर बच्चा शिक्षित हो. हर हाथ में काम हो. हर गरीब पढ़ा-लिखा हो. गांव का विकास हो. हम मिल जुल कर रहें. बस […]

:8::::: अंधेरी गलियों में उजाला लाने की जरूरत स्व कार्तिक उरांव की जयंती पर विशेष28 गुम 3 कार्तिक उरांव का फाइल फोटोदुर्जय पासवान, गुमलाखुशी का दामन न छूटे. खेत में हरियाली रहे. हर बच्चा शिक्षित हो. हर हाथ में काम हो. हर गरीब पढ़ा-लिखा हो. गांव का विकास हो. हम मिल जुल कर रहें. बस मेरे सपने मेरे अपनों के लिए पूरा हो.यह सपना ओर कोई नहीं, गुमला जिला के लिटाटोली गांव में 29 अक्तूबर 1924 को जन्मे कार्तिक उरांव ने उस समय देखा था. जब गुमला जिला अशिक्षा, अंधविश्वास व पिछड़ेपन से गुजर रहा था. वर्तमान परिवेश में जरूर कुछ हद तक ये सपने पूरे हुए हैं. लेकिन आज भी कई सपने अधूरे हैं. जिसे पूरा करना हम सबों का कर्तव्य है. कार्तिक ने 1959 में दुनिया के सबसे बड़े ऑटोमेटिक पावर स्टेशन का प्रारूप ब्रिटिश सरकार को दिया था, जो आज हिंकले न्यूक्लीयर पावर प्लांट के नाम से जाना जाता है. 1968 में जब भूदान आंदोलन तेज था, आदिवासियों की जमीन कौड़ी के भाव बिक रहे थे. ऐसे समय में उन्होंने इंदिरा गांधी से अपील की कि आदिवासियों की जमीन लूटने व भूमिहीन होने से बचाये. प्रयास सफल रहा. श्रीमती गांधी ने भूमि वापसी अधिनियम बना कर आदिवासियों की खोई जमीन वापस कराने की व्यवस्था की. रांची में बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना कार्तिक की देन है. ट्राईबल सब प्लान कार्तिक ने ही बनाया था. इसी प्लान के आधार पर आज केंद्र व राज्य सरकार आदिवासियों के विकास के लिए विविध प्रकार की विकास योजनाएं चला रही है. इन्हीं उपलब्धियों व देश के लिए किये गये कार्यों के कारण कार्तिक उरांव को छोटानागपुर का काला हीरा व आदिवासियों का मसीहा की उपाधि दी गयी. ऐसे मसीहा की मौत आठ दिसंबर 1981 को हृदय गति रुकने से हो गयी थी. मरने से पहले सपना देखे थे कि छत्तीसगढ़ राज्य से सटे रायडीह प्रखंड के मांझाटोली के समीप एक स्वशक्ति निकेतन विश्वविद्यालय की स्थापना हो. यहां सभी विषयों की पढ़ाई हो. पर यह सपना आज भी अधूरा है. कार्तिक युवाओं के प्रेरणा स्रोत हैंकार्तिक उरांव का जन्म लिटाटोली निवासी जौरा उरांव व बिरसो उरांव परिवार में हुआ था. वे चौथे संतान थे. उनका जन्म कार्तिक महीने के अमावस्या के दिन हुआ था, इसलिए उनका नाम कार्तिक रखा गया. उनका जन्म ऐसे समय हुआ था, जब शिक्षा को लोग ज्यादा महत्व नहीं देते थे, ऐसे समय में बालपन से ही प्रतिभा के धनी व कुशाग्र बुद्धि के कार्तिक उरांव ने अभियांत्रिकी के क्षेत्र में महारत हासिल कर न इस देश का बल्कि जंगल, झाड़ व पहाड़ों के बीच स्थित गुमला जिले का नाम रोशन किया. उन्होंने छोटानागपुर व इस क्षेत्र के लोगों के विकास के लिए जो सपना देखा था, आज भी गुमला जिले के जंगल व पहाड़ इस सपनें को संजोए हुए हैं. श्री उरांव आज भी इस क्षेत्र के युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं. एचइसी का पद छोड़ राजनीति में कूदेकार्तिक उरांव नौ वर्षो तक विदेश में रहे. विदेश प्रवास के बाद 1961 के मई माह में एक कुशल व दक्ष अभियंता के रूप में अपने स्वदेश लौटे. भारत लौटने पर पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कार्तिक उरांव के प्रतिभा को सराहा और रांची के एचइसी में सुपरीटेंडेंट कंस्ट्रक्शन डिजाइनर के पद पर नियुक्ति की अनुशंसा की गयी. बाद में उन्हें डिप्टी चीफ इंजीनियर डिजाइनर के पद पर प्रोन्नति मिली. परंतु उस समय छोटानागुपर के आदिवासियों की हालात को देख कार्तिक उरांव ने समाज के लिए काम करने का दृढ़ संकल्प लिया और 1962 में एचइसी के बड़े पद को छोड़ राजनीति में प्रवेश किये. पहले हारे दूसरी बार में जीतेपंडित जवाहर लाल नेहरू के मार्गदर्शन में कार्तिक उरांव ने 1962 में लोहरदगा संसदीय क्षेत्र से लोकसभा में खड़े हुए. चुनाव हार गये पर हिम्मत नहीं हारी.1967 ई के चुनाव में पुन: वे लोकसभा चुनाव में भारी मतों से विजयी हुए. इसी दौरान उन्होंने रांची में अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद की आधारशीला रखी. आज भी लोग 1980 की घटना को याद करते हैं. जब, सरकारी संस्थाओं व नौकरियों में अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों का आरक्षण की अवधि 26 जनवरी 1980 ई को समाप्त होने वाली थी, इसी बीच कार्तिक उरांव ने आरक्षण अवधि को आगे बढ़ाने के लिए आवाज बुलंद की. परिणाम स्वरूप 1990 तक के लिए आरक्षण अवधि बढ़ा दी गयी.लिटाटोली का नहीं हुआ विकासकार्तिक उरांव का पैतृक गांव करौंदा लिटाटोली आज भी विकास की बाट जोह रहा है. गांव में गरीबी, पिछड़ापन, अशिक्षा, अंधविश्वास है. इतने बड़े महान नेता के गांव के विकास पर न तो स्थानीय जनप्रतिनिधि और न ही प्रशासन ने कोई ध्यान दिया है. आज भी गांव की सड़कें खराब है. गांव में हाई स्कूल है. कार्तिक इसी स्कूल में बढ़ भारत के दक्ष अभियंता बने. लेकिन दुर्भाग्य है कि लिटाटोली स्कूल में साइंस के शिक्षक नहीं है. किसी प्रकार साइंस की पढ़ाई होती है.

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