गुमला : दो माह के बच्चे राकेश की मौत ने डॉ कृष्णा प्रसाद के निजी क्लीनिक की लापरवाही को उजागर किया है. आखिर बच्चे की मौत के बाद डॉ कृष्णा ने आनन-फानन में उसे सदर अस्पताल लेकर क्यों भरती करा कर तुरंत उसका बीएसटी बनाया. इससे साफ जाहिर हो रहा है कि मामले को दबाने की यह योजना है. बाद में जब मामले की जांच होगी, तो डॉक्टर की मौत अस्पताल में दिखाया जायेगा.
जबकि हकीकत है कि बच्चे की मौत निजी क्लीनिक में हुई है, जो की लंबे समय से फरजी तरीके से चल रहा है. सबसे आश्चर्य की बात. शुक्रवार को डॉ कृष्णा प्रसाद की ड्यूटी सदर अस्पताल में थी. उन्हें सदर अस्पताल में रहना चाहिए. लेकिन वे अस्पताल में भी नहीं थे. जिस कारण उनके निजी क्लीनिक में मरीजों की भीड़ थी. आठ बजे से ही कई मरीज बैठे हुए थे. कंपाउंडर सभी से फीस लेकर परचा भी काट चुका था.
लेकिन डॉक्टर साहब गायब थे. परिजन परेशान थे. डॉक्टर के नहीं रहने से ही राकेश की मौत हुई. अगर समय पर इलाज हो जाता, तो उसकी जान बच सकती थी. ऐसे डॉ कृष्णा को नौ बजे से अस्पताल में रहना था. लेकिन वे 11 बजे तक बिना सूचना के अस्पताल से भी गायब थे. जब बच्चे की मौत हो गयी. कंपाउंडर संतोष की पिटाई हो गयी.
तब डॉक्टर साहब दौड़े-दौड़े अपने क्लीनिक पहुंचे. लेकिन यहां भी वे अपने बचाव में बच्चे के परिजनों को ही खरीखोटी सुनाने लगे जो पहले से बच्चे की मौत से दुख में थे. यहां बता दें कि कई बार सीएस डॉ एनएस झा ने पत्र जारी कर रोस्टर ड्यूटी के अनुसार डॉक्टरों से काम करने के लिए कहा है. लेकिन यहां कई ऐसे डॉक्टर हैं, जो अस्पताल में कम व निजी क्लीनिक में अधिक ध्यान देते हैं. प्राइवेट प्रैक्टिस से कई डॉक्टर मालामाल हो रहे हैं. डॉक्टर की लापरवाही की कभी जांच नहीं होती. जिसका नतीजा है कि मरीजों के जान के साथ खिलवाड़ हो रहा है.