दुर्जय पासवान, गुमला
राजनीति के गलियारे में गुमला विधानसभा हॉट सीट मानी जाती है. यहां अक्सर उम्मीदवारों के बीच लड़ाई झगड़ा होता है. इस सीट से पार्टियों द्वारा उम्मीदवार का भी चयन सोच समझकर किया जाता है. क्योंकि, 1990 ईस्वी के बाद से कोई भी उम्मीदवार दूसरी बार चुनाव जीतकर विधायक नहीं बना है. इसलिए पार्टियां हर चुनाव में उम्मीदवार बदलती रही है.
खासकर भाजपा पार्टी उम्मीदवार बदलने में आगे है. 2009 में कमलेश उरांव को भाजपा ने टिकट दिया तो वे जीते. परंतु 2014 में कमलेश उरांव का टिकट काटकर शिवशंकर उरांव को टिकट दे दिया गया. जिसका परिणाम है कि नया चेहरे देखकर जनता ने शिवशंकर को जीताया. इधर, 2019 के चुनाव में भी भाजपा ने फिर नया प्रयोग किया है.
शिवशंकर उरांव का टिकट काटकर युवा नेता मिशिर कुजूर को टिकट दिया गया. भाजपा हर चुनाव में नया प्रयोग कर गुमला सीट जीतते रही है. गुमला की जनता के लिए मिशिर कुजूर का चेहरा पुराना है. लेकिन पार्टी के लिए नया है. वहीं, दूसरी ओर झामुमो ने फिर पुराने चेहरे भूषण तिर्की पर दावं खेला है.
झामुमो को अभी भी नेतरहाट फिल्ड फायरिंग रेंज के खिलाफ आंदोलन करने वाले भूषण तिर्की पर विश्वास है कि वह गुमला सीट जीत सकता है. भूषण तिर्की 2005 में गुमला विधानसभा से विधायक रह चुके हैं. लेकिन इसके बाद वोट कटवा के कारण झामुमो की हार होती रही है. 2009 व 2014 के चुनाव में भूषण तिर्की की हार कांग्रेस के कारण हुई थी. क्योंकि कांग्रेस ने 2009 में जोय बाखला व 2014 में विनोद किस्पोटटा का चुनावी मैदान में उतारा था.
कांग्रेस में वोट बंटने के कारण झामुमो हारा था. परंतु इसबार गठबंधन है और कांग्रेस गुमला सीट से चुनाव नहीं लड़ रही है. अब देखना है कि जनता नये या पुराने चेहरे को पसंद करती है. या फिर किसी दूसरी पार्टी के उम्मीदवार को चुनाव जीताती है. क्योंकि गुमला सीट से इसबार कई प्रचलित चेहरा चुनाव लड़ रहा है.
छह टर्म के विधायक
1990 – जीतवाहन बड़ाइक – भाजपा
1995 – बेरनार्ड मिंज – झामुमो
2000 – सुदर्शन भगत – भाजपा
2005 – भूषण तिर्की – झामुमो
2009 – कमलेश उरांव – भाजपा
2014 – शिवशंकर उरांव – भाजपा