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परसा में डेढ़ दशक पूर्व बने अस्पताल में चिकित्सक की प्रतिनियुक्त नहीं, दो एएनएम के भरोसे बड़ी आबादी

हनवारा के लोगों को 20 किमी दूर महागामा या 60 किमी भागलपुर जाकर इलाज करने की मजबूरी

महागामा प्रखंड के परसा में बना अस्पताल क्षेत्र के लोगों के लिए किसी काम का नहीं रह गया है. इस कारण अस्पताल को अब तक सुव्यवस्थित तरीके से चालू नहीं कराया जा सका है. तकरीबन डेढ़ दशक पूर्व इस अस्पताल को हनवारा के परसा में बनाया गया था. इसका एक मात्र उद्देश्य था कि परसा में बनने से हनवारा सहित आसपास गांवों के लोगों को कम से कम स्वास्थ्य सुविधा मुहैया करायी जाती. क्योंकि हनवारा व परसा से महागामा प्रखंड मुख्यालय की दूरी तकरीबन 20 किमी है. ऐसे में किसी प्रकार की अनहोनी होने पर कम से कम निकटवर्ती सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में यह सुविधा मुहैया करायी जाती. परंतु, ऐसा नहीं हो सका. मामला बिगड़ जाने पर या तो महागामा या फिर गोड्डा का रुख करना पड़ता है, जो हनवारा व परसा से तकरीबन 40 किमी दूरी पर है. परसा में जब अस्पताल भवन बनाया जा रहा था, तो लोगों में इस बात की आस जगी थी कि कम से कम यहां चिकित्सा सुविधा बहाल की जाती. चिकित्सक बैठते तो लोगों का यहां इजाज किया जाता. लेकिन दो एएनएम की प्रतिनियुक्ति कर केवल खानापूर्ति की गयी. अब तो भवन का अधिकांश भाग भूतबंगला के रूप में दिनों-दिन तब्दील होता जा रहा है. सुव्यस्थित तरीके से चालू नहीं होने के कारण इस क्षेत्र के हजारों ग्रामीणों को इलाज से महरूम होना पड़ता है.

………………………………..तकरीबन तीन करोड़ की राशि से बनाया गया था परसा का अस्पताल

परसा का अस्पताल वर्ष 2010 में तकरीबन तीन करोड़ की राशि से बनाया गया था. तभी जिस उद्देश्य को ध्यान में रखकर अस्पताल बनाया गया था, यह उद्देश्य में फेल हो गया. इसमें केवल दो एएनएम रहती हैं. विभाग के अनुसार यह स्वास्थ्य उपकेंद्र के रूप में कार्यरत हैं. पहले कुछ दिनों तक परसा में एक चिकित्सक की प्रतिनियुक्ति की गयी थी, लेकिन ट्रांसफर होने के बाद दोबारा किसी चिकित्सक की प्रतिनियुक्ति नहीं की जा सकी. फलत: धीरे-धीरे यह अस्पताल विभाग का डेड स्टेटस बनता जा रहा है.

चिकित्सक प्रतिनियुक्त नहीं होने से नाम का रह गया है अस्पताल

फिलहाल अस्पताल दिखावे की वस्तु बना हुआ है. सिर्फ नाम का ही अस्पताल है. परसा में अस्पताल में चिकित्सकीय सेवा नहीं मिलने के कारण लोग यहां से 20 किमी दूर महागामा या 60 किमी दूर भागलपुर इलाज कराने जाते हैं. इमरजेंसी रोगी अस्पताल पहुंचते-पहुंचते दम तोड़ देते हैं. बहरहाल इस अस्पताल को स्वास्थ्य उपकेंद्र का ही दर्जा देकर रखा गया है, जिसे दो एएनएम के भरोसे ही छोड़ दिया गया है. बुद्धिजीवियों का कहना है कि रोगियों को सही सुविधा दिलाने के लिए चिकित्सकों की तैनाती जरूरी है.

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