बिरनी प्रखंड मुख्यालय से तीन किमी दूर पड़रिया गांव मे मां वैष्णवी बसंती दुर्गा पूजा 76 वर्षो से ग्रामीणों के सहयोग से की जा रही है. प्रत्येक वर्ष प्रतिमा स्थापित कर वैष्णवी रीति से मां की आराधना करते हैं. मां की महिमा काफी दूर तक फैली हुई है. इसके कारण प्रखंड के अलग अलग गांवों के अलावा अन्य प्रखंडों से श्रद्धालु यहां आते हैं. कलश स्थापन के दिन से ही महिलाओं की भीड़ यहां इकट्ठा होने लगती है. पूजा समिति के अध्यक्ष सह ग्रामीण राजदेव साव, उपाध्यक्ष अशोक साव, सचिव रामसहाय यादव, उपसचिव बिनोद साव, कोषाध्यक्ष कामेश्वर यादव, उप कोषाध्यक्ष अनीश कुमार दास, विक्रम साव, मंटू साव, भगत, गोबिंद साव, पिंटू साव, पप्पू साव, सुजीत साव, लालमोहन साव, महेश साव, बहादुर साव, सजंय कुमार यादव, नरेश साव, संदीप दास, पप्पू मोदी, दशरथ दास, जीतन दास, चंदन दास समेत अन्य ने बताया कि पड़रिया गांव में वर्ष 76 वर्षों से ग्रामीणों के सहयोग से पूजा हो रही है. इसमें पूरे गांव के ग्रामीण बढ़ चढ़कर भाग लेते हैं. कलश स्थापन के दिन से पूरे गांव में मांस मंदिरा, प्याज, लहसून का प्रयोग बंद हो जाता है. पूरे गांव में कलश स्थापना से नवमी तक पूजा की जाती है. दशमी को यहां भव्य मेला लगता है. मां को विदाई में भी उत्साह रहता है. मां की महिमा काफी दूर तक फैली हुई है. मान्यता है कि मां सबकी मनोकामना पूरी करतीं हैं. लोगों ने बताया कि एक बाद गांव में महामारी होने पर मां की प्रतिमा स्थापित कर पूजा करने का संकल्प लिया था. महामारी समाप्त होने के बाद ग्रामीणों ने मिट्टी से बने खपड़ैल मकान में प्रतिमा स्थापित कर पूजा शुरू की. ख्याति बढ़ने के बाद ग्रामीणों ने भव्य मंदिर का निर्माण करवाया.
बंगाल से आते हैं कारीगर
ग्रामीण व पूजा समिति बंगाल से कारीगरों को बुलाकर मां की प्रतिमा का निर्माण करवाते हैं. पुजारी महेश पांडेय ने कहा कि यहां वैष्णव रीति से पूजा होती है. मां दुर्गा की महिमा दूर-दूर तक फैली हुई है. यहां पर पूजा के समय ही नहीं बल्कि पूरे वर्ष शनिवार व मंगलवार को पूजा के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है. श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी होने के बाद लोग मां को शृंगार का चढ़ावा चढ़ाते हैं. मां के दरबार में जो भी आता है, वह खाली नहीं जाता है.
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