इस उत्सव में लोग कई प्रकार के व्यंजनों का लुफ्त उठाते हैं. खासकर अपने खेतों से उपजे अनाज से पकवान बनाकर सामूहिक रूप से ग्रहण करते हैं. इसमें खिचड़ी, तिलकुट, दही, चूड़ा आदि प्रसिद्ध है. प्रत्येक घरों में चावल का छिलका व इडली भी बनता है. इस त्योहार में खासकर ग्रामीण क्षेत्र के लोग अपने खेतों में उपजे धान का चूड़ा ज्यादा पसंद करते हैं. त्योहार का समय आने के पूर्व लोग अपने घरों से धान लेकर चूड़ा कुटाने चूड़ा मिलों में आते हैं. इन दिनों सरिया स्थित विभिन्न चूड़ा मिलों में भीड़ बढ़ती जा रही है. सरिया प्रखंड क्षेत्र के अलावा चिचाकी, चौधरीबांध, गड़ैया-बिहार, परसाबाद, चौबे, सरमाटांड़,चलकुशा, बिरनी, मरकच्चो समेत अन्य जगहों से लोग ट्रेनों तथा अन्य माध्यमों से सरिया पहुंचते हैं. इस त्योहार में चूड़ा-दही की महत्ता को समझते हुए तथा मिलों में अत्यधिक भीड़ रहने के कारण लोग दो-दो दिनों तक पंक्ति में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार करते हैं.
सरिया की है पुरानी पंरपरा
बता दें कि सरिया तथा आसपास के इलाके में चूड़ा बनाने की परंपरा पुरानी है. इसके लिए लोग अपने घरों में विशेष पद्धति से चूड़ा बनाने के लिए धान तैयार करते हैं. सरिया के विवेकानंद मार्ग, रेलवे फाटक के समीप और डाकबंगला रोड स्थित चूड़ा मिलों में सुबह चार बजे से ही लोग पंक्ति में खड़े दिखेंगे. इस त्योहार में चूड़ा मिल मालिकों का कारोबार बढ़ जाता है. कई बेरोजगार मजदूरों को रोजगार मिलता है. स्थानीय निवासी झुन्नू सिंह की मानें, तो इस वर्ष मिलों में 10 रुपये प्रति किलो चूड़ा की कुटाई की जा रही है, जबकि खुले बाजार में 45-50 रुपये प्रति किलो चूड़ा उपलब्ध है. इसके बावजूद ग्रामीण अपने खेतों में उपजे उन्नत किस्म के धान से बनाये गये चूड़ा का अधिक प्रयोग करते हैं. मिल मालिक महेश कुमार वर्मा ने कहा कि चूड़ा कुटाई का व्यवसाय दिसंबर-जनवरी महीने में होता है, जो अल्पकालिक है. इस महीने में मिलों में भीड़ अधिक रहती है. रात में आराम करने के लिए दो-तीन घंटे मिल बंद रहता है. भीड़ को देखते हुए मजबूरन उन्हें तीन-चार बजे सुबह तक मिल चालू रखनी पड़ती है. बताया कि अल्पकालीन इस धंधे में चूड़ा तैयार करने के लिए कुशल मजदूर तथा कोयले की आवश्यकता होती है, इसलिए रेट थोड़ा अधिक है.
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