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लावारिस मिल रहे नवजातों के मामले में प्राथमिकी तक दर्ज नहीं कर रही पुलिस

गिरिडीह : ‘परी की मौत ने यह सवाल छोड़ दिया कसूरवार कौन था यह तो बता दे जरा’ आज यह सवाल हर उस नवजात की मौत के बाद उठ रहा है,जिसकी लाश लावारिस मिल रही है. विडंबना देखिये की मानवता को शर्मिंदा करनेवाली इन घटनाओं को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है. न तो […]

गिरिडीह : ‘परी की मौत ने यह सवाल छोड़ दिया कसूरवार कौन था यह तो बता दे जरा’ आज यह सवाल हर उस नवजात की मौत के बाद उठ रहा है,जिसकी लाश लावारिस मिल रही है. विडंबना देखिये की मानवता को शर्मिंदा करनेवाली इन घटनाओं को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है. न तो पुलिस इस मामले पर प्राथमिकी दर्ज कर रही है और न ही प्रशासन के अधिकारियों का इस ओर ध्यान जा रहा है. आये दिन इस तरह के मामले सामने आ रहे हैं और गुनेहगार पर कानूनन कार्रवाई भी नहीं हो रही है.
इस तरह के मामले को संज्ञान में ले पुलिस: मोनिका : वहीं नवजात बच्चों की रक्षा के लिये चलायी जा रही संस्था पालोना की मोनिका आर्या कहती हैं कि नवजात बच्चों के मामले में पुलिस को खुद ही संज्ञान लेना चाहिए. इस तरह के मामले की जांच होनी ही चाहिए और बच्चे को किसने मरने के लिये फेंका था या मार कर फेंका था. पुलिस इस तरह के मामले में जब कार्रवाई करेगी तो निश्चित ही इस तरह की घटनाओं पर विराम लगेगा. बताया कि इस तरह के मामले में प्राथमिकी दर्ज करने की मांग को लेकर उनकी संस्था राज्य के डीजीपी से भी मिल चुकी है. डीजीपी ने भी कार्रवाई का भरोसा दिया है.
जीवित बच्चों का किया जाता है रेस्क्यू : जीतू: मामले पर जिला बाल संरक्षण पदाधिकारी जीतू कुमार ने कहा कि जो बच्चे जीवित मिलते हैं तो उसका रेस्क्यू किया जाता है. अभी बच्चों को एडॉप्शन सेंटर भेजा जाता है और वहीं 60 दिनों के अंदर कोई दावेदार नहीं आता है तो बच्चे को एडॉप्शन की कार्रवाई उक्त सेंटर करता है. बताया कि एक वर्ष के दौरान तीन बच्चे जीवित अवस्था में मिले हैं.
एक माह में चार घटनाएं
पिछले एक माह की ही बात करें तो शहर व उससे सटे इलाके में इस तरह की चार घटनाएं सामने आयीं. हाल की घटनाओं का जिक्र करें तो 29 जुलाई को शहर के नेताजी चौक के समीप कचरे में दो महिलाओं ने एक बच्ची को फेंक दिया. महिलाओं की इस हरकत पर समीप के गैराज में वाहन बनवा रहे पपरवाटांड़ निवासी जगत पासवान की नजर पड़ी.
जगत ने तत्परता दिखायी और बच्ची को अस्पताल ले जाया गया. बाद में मामले को जिला बाल संरक्षण इकाई ने संज्ञान में लिया और जिला बाल संरक्षण पदाधिकारी जीतू कुमार ने स्थानीय समाजसेवियों व उद्योगपति के सहयोग से बच्ची को इलाज के लिये बोकारों में भर्ती कराया गया. भर्ती कराने के 10 दिनों बाद उक्त बच्ची ने दम तोड़ दिया. इस घटना के कुछ दिनों बाद 3 अगस्त को एक प्री मैच्यौर बेबी की लाश 28 नंबर भंडारीडीह के नाले में मिली.
जंगल में बच्चे को छोड़ भाग गये लोग
13 अगस्त को ताराटांड़ थाना क्षेत्र के बड़कीटांड़ जंगल में एक बच्चा जीवित अवस्था में लावारिस मिला. इस बच्चे को जंगल में कुत्ते नोंच रहे थे तभी इसपर लोगों की नजर पड़ी और बच्चे को बचाया गया. बाद में गांडेय के फुलची पहरदाहा के रहनेवाले गुलजार व उसकी पत्नी सोनिया खातून ने बच्चे का इलाज करवाया और अभी बच्चा उसी की देखरेख में हैं. हालांकि बाल संरक्षण इकाई इस बच्चे की खैरियत ले रही है. चौथा मामला 22 अगस्त को उसरी नदी में अरगाघाट के समीप प्रकाश में आया.
यहां पर भी नवजात का शव नदी में फेंका मिला. रंगकर्मी महेश अमन ने इसे प्रकाश में भी लाया लेकिन आगे किसी का ध्यान इस ओर नहीं गया और संभवता नवजात किसी जानवर का आहार बन गया. इसी तरह 8 जनवरी को जमुआ के चुंगलो नावा हार में लाश मिली थी. इस लाश को पुलिस ने स्थानीय लोगों के सहयोग से दफना दिया था.
क्या कहते हैं कानूनविद
इस तरह के मामले पर अधिवक्त शिवेन्द्र कुमार सिन्हा का कहना है कि लावारिस अवस्था में नवजात का शव मिलने पर आइपीसी की धारा 316 या 318 के तहत प्राथमिकी दर्ज होनी चाहिए. वहीं शव का पोस्टमार्टम कराने के बाद यदि हत्या की पुष्टि हो जाती है तो मुकदमा 302 में कन्वर्ट होना चाहिए. कहते हैं कि वहीं अगर कोई नवजात बच्चा परित्यक्त अवस्था में जीवित मिलता है तो इस तरह के मामले में आइपीसी की धारा 317, 307 के तहत कार्रवाई होनी चाहिए.
गंभीरता से लिया जायेगा मामला: डीएसपी
डीएसपी जीतबाहन उरांव ने कहा कि नवजात की लावारिस लाश के मामले को गंभीरता से लिया जायेगा और जिन-जिन थाना क्षेत्र में इस तरह का शव मिला है या जीवित पाया गया है,उसकी जांच करवायी जायेगी. अभी तक इस तरह के मामले में क्या कदम उठाये गये, इसकी भी जानकारी ली जायेगी.

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