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जिले के 20 में से 11 प्रखंड में बीडीओ नहीं, चार में सीओ नहीं

गढ़वा जिले में ओखरगाड़ा के बाद अब पेशका को भी प्रखंड बनाने की मांग ने जोर पकड़ लिया है

पीयूष तिवारी, गढ़वा गढ़वा जिले में ओखरगाड़ा के बाद अब पेशका को भी प्रखंड बनाने की मांग ने जोर पकड़ लिया है. मेराल प्रखंड से ओखरगाड़ा को अलग करते हुए प्रखंड बनाने की मांग को लेकर जहां पूर्व मंत्री सह झामुमो नेता मिथिलेश कुमार ठाकुर ने मुख्यमंत्री से मिलकर उन्हें आवेदन दिया है. वहीं दूसरी ओर भाजपा नेता सह विधायक सत्येंद्रनाथ तिवारी की मौजूदगी में पेशका को प्रखंड बनाने की मांग को लेकर बुधवार को पेशका प्रखंड बनाओ संघर्ष समिति के बैनर तले समाहरणालय पर धरना दिया गया तथा मुख्यमंत्री को मांगपत्र प्रेषित किया गया. इस प्रकार से गढ़वा जिले में एक बार फिर से छोटे-छोटे प्रखंड बनाने की मांग शुरू हो गयी है. यह राजनीतिक रंग भी ले चुका है. गढ़वा जिले में वर्तमान समय में 20 प्रखंड हैं. लेकिन अभी छह और ऐसे क्षेत्र हैं, जहां से आये दिन अलग प्रखंड बनाने की मांग उठती रही है. इसमें मेराल से काटकर ओखरगाड़ा व पेशका के अलावा रंका से काटकर विश्रामपुर, गढ़वा से काटकर डुमरिया, मझिआंव से काटकर मोरबे एवं कांडी प्रखंड से काटकर हरिहरपुर को प्रखंड बनाने की मांग आये दिन उठते रहती है. यदि ग्रामीणों की मांगों को मानते हुए सभी को प्रखंड बना दिया जाये, तो गढ़वा जिले में प्रखंडों की संख्या कुल 26 हो जायेगी.

नये प्रखंड बने, पर पदाधिकारी नहीं मिले

गढवा के जिला बनने के बाद राजनीतिक, प्रशासनिक व जनता की मांग आदि कारणों की वजह से 12 नये प्रखंड तो बनाये जरूर गये हैं. लेकिन यहां कार्य के दृष्टिकोण से लंबे समय से पदाधिकारी व कर्मियों का पद रिक्त ही रहा है. सबसे बाद में बने डंडा, बरडीहा, विशनुपुरा, सगमा जैसे प्रखंडों में हमेशा अंचल पदाधिकारी व प्रखंड विकास पदाधिकारी प्रभार में ही रहे हैं. इस वजह से बीडीओ व सीओ जैसे पदाधिकारी सप्ताह में एक या दो दिन ही बैठते हैं. गढ़वा जिले में अभी डंडा, मेराल, कांडी, बरडीहा, रमकंडा, बड़गड़, रमना, विशुनपुरा, केतार, धुरकी व सगमा प्रखंड में बीडीओ नहीं हैं. यहां दो प्रखंड मेराल व विशुनपुरा अन्य प्रखंडों को छोड़कर दूसरे प्रखंड के सीओ या बीडीओ प्रभार मे हैं. इनमें मेराल में रका के कार्यपालक दंडाधिकारी सतीश भगत तथा विशुनपुरा में गढ़वा के कार्यपालक दंडाधिकारी राजेश कुमार बीडीओ के प्रभार में हैं. जबकि डंडई, बरडीहा, विशुनपुरा व सगमा में अंचल पदाधिकारी का पर रिक्त हैं. इनमें विशुनपुरा प्रखंड में गढ़वा के कार्यपालक दंडाधिकारी राजेश कुमार सीओ के प्रभार में हैं. इसके अलावे इन सभी प्रखंडों में प्रखंड कृषि पदाधिकारी, प्रखंड आपूर्ति पदाधिकारी, अंचल निरीक्षक, राजस्व कर्मचारी, प्रधान सहायक, सहायक आदि की भी संख्या सृजित पद से काफी कम है.

गढ़वा में कब-कब अलग हुआ प्रखंड

एक अप्रैल 1991 को जब गढ़वा जिला पलामू से अलग हुआ, तो यहां प्रखंडों की कुल संख्या मात्र आठ थी. तब मात्र गढ़वा, मेराल, रंका, भंडरिया, मझिआंव, नगरउंटारी, भवनाथपुर एवं धुरकी को ही प्रखंड का दर्जा प्राप्त था. लेकिन उसके बाद करीब 34 सालों में 12 नये प्रखंड बनाये गये. इनमें प्रशासनिक आधार व प्रखंडों से दूरी के आधार पर डडई, चिनिया, खरौंधी, रमना, रमकंडा व कांडी प्रखंड का निर्माण कराया गया. लेकिन सबसे लेटेस्ट प्रखंड डंडा, केतार, विशुनपुरा, सगमा, बरडीहा व बडगड़ को बनाया गया है. इनमें सबसे हाल में बड़गड़ को नौ अगस्त 2014 में प्रखंड का दर्जा मिला है. जबकि सबसे पुराना प्रखंड गढ़वा है, गढ़वा को आजादी से पहले साल 1924 में छह मई को ग्राम प्रशासन अधिनियम के तहत यूनियन बोर्ड बनाया गया था. जबकि नौ अगस्त 1957 को अधिसूचित क्षेत्र के रूप में गढ़वा शहर को दर्जा मिला है.

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