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दानरो नदी बना ओपन टॉयलेट जोन

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गढ़वा. स्वच्छ भारत मिशन के तहत गढ़वा नगर परिषद क्षेत्र को (ओडीएफ) खुले में शौच से मुक्त (ओपेन डिफेकेशन फ्री या ओडीएफ) करने के लिए गत नौ वर्षों में 6.30 करोड़ रु खर्च किये गये. लेकिन इस मामले में शहर की हालत वही है, जो नौ वर्ष पहले थी. विदित हो कि गढ़वा शहर को खुले में शौच से मुक्त करने की शुरुआत करीब नौ वर्ष पहले हुई थी. अब तक इस दिशा में 6.16 करोड़ रुपये खर्च किये जा चुके हैं, लेकिन हालात यह हैं कि शहर के लोग आज भी दानरो नदी के किनारे और सार्वजनिक स्थलों पर खुले में शौच करते देखे जा सकते हैं. वर्ष 2016-17 में शुरू हुआ था अभियान वर्ष 2016-17 में गढ़वा नगर परिषद द्वारा ओडीएफ घोषित करने की दिशा में जोर-शोर से अभियान चलाया गया था. उस समय लगभग तीन हजार ऐसे परिवारों की पहचान की गयी थी, जिनके घरों में शौचालय नहीं थे. इन्हें सरकार की ओर से अनुदान देकर शौचालय निर्माण की सुविधा दी गयी. इस पर 3.60 करोड़ रु खर्च किये गये. इसके साथ ही 2.42 करोड़ रु की लागत से 15 सामुदायिक शौचालयों का निर्माण कराया गया. इसके अलावा, लोगों को खुले में लघुशंका करने से रोकने के लिए भी करीब 14 लाख रुपये की लागत से सात मॉड्यूल यूरिनल लगाये गये. लेकिन आज स्थिति यह है कि अधिकतर सामुदायिक शौचालय जर्जर हो चुके हैं या उपयोग के लायक नहीं हैं. वहीं यूरिनल लंबे समय से बंद पड़े हैं और रखरखाव के अभाव में इनका अस्तित्व लगभग खत्म हो चुका है. नगर परिषद न तो इनका नियमित रखरखाव कर रहा है, न ही मरम्मत कार्य पर कोई ध्यान दिया जा रहा है. लोगों में जागरूकता की कमी सबसे बड़ी समस्या : इन ढांचागत विफलताओं के साथ-साथ एक और बड़ी समस्या है. तमाम प्रयासों के बावजूद लोगों में जागरूकता की भारी कमी है. शौचालय होने के बावजूद कई लोग अब भी खुले में शौच करना बेहतर समझते हैं. प्रशासन ने न तो कोई ठोस निगरानी व्यवस्था बनायी और न ही जनजागरूकता के लिए सतत अभियान चलाया. नतीजा यह है कि करोड़ों की लागत से बना स्वच्छता ढांचा अब बदहाल हालत में खड़ा है तथा गढ़वा ओडीएफ से अभी कोसों दूर है. मेन रोड में दो यूरिनल हैं बंद : शहर के मुख्य मार्ग पर नगर परिषद ने बालिका विद्यालय और गोविंद सकूल के समीप दो मोड्यूल यूरिनल का निर्माण कराया गया था. लेकिन अब दोनों का अस्तीत्व ही समाप्त हो गया है. ऐसे में लोग यूरिनल के लिए खुले का इस्तेमाल करते हैं. इधर शहर के कई सार्वजनिक स्थलों पर खुले में लघुशंका करने के कारण राहगीरों को दुर्गंध का सामना करना पड़ता है. वहीं पुरानी बाजार जहां काफी भीड़ होती है, वहीं भी यूरिनल की कोई व्यवस्था नहीं है.

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