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सुबह सबेरे व शनि परब जैसे कार्यक्रम में 100 नये कलाकारों को मिला था मंच

विभिन्न विधाओं के कलाकारों को प्रोत्साहित करने एवं सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ाने के उद्देश्य से शुरू किये गये शनि परब एवं सुबह सबेरे नामक कार्यक्रम से कलाकारों को एक मंच प्रदान होता था.

पीयूष तिवारी, गढ़वा विभिन्न विधाओं के कलाकारों को प्रोत्साहित करने एवं सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ाने के उद्देश्य से शुरू किये गये शनि परब एवं सुबह सबेरे नामक कार्यक्रम से कलाकारों को एक मंच प्रदान होता था. इसमें वे उत्साह के साथ भाग लिया करते थे. लेकिन करीब छह साल से गढ़वा जिले में इस कार्यक्रम के लिए सरकारी आवंटन बंद कर दिया गया है. इससे इस प्रकार के कार्यक्रम का आयोजन भी बंद हो गया है. इससे कलाकारों में निराशा का माहौल व्याप्त है. उल्लेखनीय है कि पर्यटन, कला-संस्कृति, खेलकूद एवं युवा कार्य विभाग तथा सूचना एवं जनसंपर्क विभाग द्वारा प्रत्येक शनिवार की सुबह में सुबह सबेरे व शाम में शनि परब नामक कार्यक्रम आयोजित किये जाते थे.

क्या था सुबह सबेरे व शनि परब

स्थानीय कला और संस्कृति को प्रोत्साहित करने और युवाओं को सशक्त बनाने के उद्देश्य से शनि परब एवं सुबह सबेरे नामक कार्यक्रम सूचना एवं जनसंपर्क विभाग की ओर से संचालित किया जाता था. यह एक ऐसा कार्यक्रम था, जो हर शनिवार की सुबह व शाम में आयोजित किया जाता था. गढ़वा शहर के गोविंद उच्च विद्यालय के मैदान में यह कार्यक्रम आयोजित किया जाता था. इसके तहत सुबह में सुगम संगीत, भजन, शाम में नाटक, गीत, गजल, नृत्य आदि की कला की प्रस्तुति की जाती थी. सुबह में स्थानीय कलाकारों की एक टीम एवं शाम में स्थानीय कलाकारों की तीन टीम को प्रस्तुति देनी थी.

प्रत्येक टीम में आठ से 10 कलाकार शामिल रहे थे और प्रत्येक टीम को 10-10 हजार रुपये का प्रोत्साहन राशि मिला करता था. इस प्रकार से प्रत्येक शनिवार को 40 हजार रुपये की प्रोत्साहन राशि कलाकार प्राप्त करते थे. इसके अलावा कलाकारों को आयोजन स्थल तक आने के लिये दो हजार रुपये अलग से मिलते थे. सिर्फ कलाकार ही नहीं बल्कि दर्शकों के चाय-पानी-बिस्कुट के लिए भी एक-एक हजार रुपये सुबह व शाम में आवंटित की गयी थी. इसको संचालित करने के लिए जिलास्तर पर तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया था. इसमें कॉडिनेटर के रूप में मेलॉडी ऑक्रेष्टा के दयाशंकर गुप्ता तथा सदस्य के रूप में गायक कलाकार विजय प्रताप देव एवं संगीतकार प्रमोद सोनी शामिल थे.

कॉर्डिनेटर को नये-नये कलाकारों को खोजने के लिए अलग से 1500 रुपये मिलते जाते थे. इसके अलावा टेंट-कुर्सी आदि का खर्चा भी सरकार उठाती थी. लेकिन साल 2019 से यह आयोजन बंद हो गया है. दो वित्तीय साल 2017-18 में 36 तथा वित्तीय साल 2018-19 में 21 कार्यक्रम सहित कुल 57 कार्यक्रम आयोजित किये गये थे. यह कार्यक्रम साल 2017 में शुरू किया गया था. जिसे करीब दो साल बाद बंद कर दिया गया. इसके बाद से कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिए अलग से कोई कार्यक्रम एवं योजना सरकार की नहीं चलायी गयी है. सुबह-सबेरे व शनि परब कार्यक्रम से विभिन्न विधाओं के 100 से ज्यादा कालाकार जुड़े हुए थे. इसमें नाटक, नृत्य, लोकगीत कलाकार, तबला वादक, बैंजो वादक, पैड वादक, गिटार वादक, ऑर्गन वादक, ढोलक वादक, झाल वादक आदि कलाकार आदि शामिल थे.

प्रोत्साहित करने के लिए ऐसे कार्यक्रम जरूरी : दयाशंकर गुप्ता

इस संबंध में इस आयोजन के कॉर्डिनेटर दयाशंकर गुप्ता ने कहा कि इस कार्यक्रम के बंद होने के बाद उन्होंने राज्यस्तरीय कॉर्डिनेटर चंद्रदेव सिंह के साथ मिलकर तत्कालीन पर्यटन कला मंत्री मिथिलेश ठाकुर को आवेदन भी दिया था. तब मंत्री ने उन्हें आश्वासन भी दिया था कि वे इस पर विचार करेंगे. लेकिन आज तक सरकार ने फिर से कलाकारों के बारे में कोई सुध नहीं ली. उन्होंने कहा कि कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार को फिर से इस तरह की योजना लानी चाहिए.

कलाकारों के लिए कोई योजना नहीं : अरुण पांडेय

जबकि इस संबंध में गढ़वा जिले के प्रसिद्ध उदघोषक एवं गायक कलाकार अरुण पांडेय ने कहा कि सरकार खिलाड़ियों की प्रतिभा को आगे बढ़ाने एवं निखारने के लिए योजना बनाती है, लेकिन गीत, संगीत व नाटक के कलाकार जो गांव-देहात व छोटे शहरों में हैं, उनको आगे बढ़ाने के लिए सरकार के पास कोई योजना नहीं है. सुबह सबेरे व शनि परब जैसे आयोजन बंद होने से कलाकार काफी मायूस हैं.

कार्यक्रम से कलाकारों में आत्मविश्वास आ रहा था : नीरज श्रीधर

पंडित हर्ष द्विवेदी कला मंच गढ़वा के निदेशक सह सुबह सबेरे व शनि परब के झारखंड राज्यस्तरीय समिति के सदस्य रहे नीरज श्रीधर ने बताया कि कलाकारों की जिंदगी तभी तक है, जब तक वह मंच पर है. उसके बाद उसे पूछनेवाला भी कोई नहीं होता है. उन्होंने कहा सुबह सबेरे कार्यक्रम में प्रस्तुति देने से स्थानीय कलाकारों में आत्मविश्वास आ रहा था और उनको क्षेत्र में प्रतिष्ठा भी मिल रही थी. बेहतर प्रस्तुति देनेवाले कलाकारों की दूसरे आयोजनों में भी मांग हो रही थी. इसलिए सरकार को कला साधकों के लिए भी चिंता करनी चाहिए.

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