गुड़ाबांदा. सुवर्णरेखा नदी में पानी ही नहीं रेत के साथ सोना भी बहता है. इससे सैकड़ों परिवार का जीवन यापन हो रहा है. ग्रामीण सोने की बारिक कणों को रेत से निकाल कर जीवन यापन कर रहे हैं. गुड़ाबांदा के भाकर गांव के कई परिवार इस काम में सुबह से शाम तक जुटे रहते हैं. भाकर के अलावे नदी के तटवर्ती इलाके में कई गांव हैं. यहां धीवर और कैवर्त समाज के लोग इस काम को करते हैं. सुवर्णरेखा नदी किनारे रेत को छानने के बाद कुछ सोने के कण निकलते हैं. इसे जमाकर ग्रामीण बेचते हैं. प्रतिदिन 400 से 500 रुपये की आमदनी होती है.
धोरा-धीवर जाति के लोग निकालते हैं सोना:
भाकर गांव के धीवर (धोरा) जाति के लोग इस परंपरा को जीवित रखे हुए हैं. दिनभर की कड़ी मेहनत के बाद सोने के चंद कण मिलते हैं. धीवर जाति के लोग पीढ़ी-दर-पीढ़ी इस काम को करते आ रहे हैं. हर दिन सुबह में नदी के किनारे पारंपरिक औजार, सूप और दोपहर का खाना लेकर पहुंचते हैं. ग्रामीण नदी के रेत को बड़ी सावधानी से पानी से छानते हैं. उनकी आंखें और वर्षों का अनुभव रेत में छिपे छोटे-छोटे सोने के कणों को अलग कर लेते हैं. एक व्यक्ति को एक दिन की कड़ी मेहनत के बाद कुछ कण ही मिल पाते हैं. इसे वे स्थानीय व्यापारी या सोनार को बेच देते हैं. एक धान से सोने के कण को तौला जाता है. इसके 400 रुपये मिलते हैं. यह काम मानसून के तीन-चार माह छोड़कर पूरे साल भर चलते रहता है. सुवर्णरेखा नदी में सोने के कणों का मिलना भू-वैज्ञानिकों के लिए आज भी एक अनसुलझा रहस्य है. रांची से निकलने वाली और ओडिशा तथा पश्चिम बंगाल से होकर बंगाल की खाड़ी में मिलने वाली यह नदी में क्यों सोना बहता है, इस पर कोई ठोस वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिले हैं.
कोट
– यह हमारी परंपरा है जो वर्षों से चली आ रही है. बहुत मेहनत के बाद सोने का छोटा सा कण मिलता है. उसका भी उचित पैसा नहीं मिल पाता है. भाकर के अलावे सुवर्णरेखा नदी के अन्य कई तटवर्ती गांवों के धीवर, कैवर्त समाज के लोग इस काम में लगे हैं.
-तारापद धीवर, ग्रामीण, भाकर
– इस तरह सोने का कण नदी में मिलता है. इसकी जानकारी मुझे नहीं थी, लेकिन बहुत यह आश्चर्य की बात है.– डांगुर कोड़ाह, बीडीओ, गुड़ाबांदा
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