चाकुलिया.
राज्य गठन के 25 वर्ष बाद भी आदिवासियों को अपने हक और अधिकार से वंचित होना पड़ रहा है. आज भी राज्य के आदिवासी परिवार पक्का मकान से वंचित हैं. इससे भी अधिक चिंता की बात यह है कि छोटे-छोटे बच्चों के साथ एक आदिवासी परिवार तंबू में रहने को विवश है. जबकि दूसरा परिवार अपनी वृद्ध मां के साथ जर्जर कच्चे मकान में तिरपाल टांगकर जिंदगी गुजर-बसर कर रहा है. यह मामला चाकुलिया प्रखंड की बरडीकानपुर-कालापाथर पंचायत के पोचापानी गांव की है.आंधी-बारिश में टूटा कच्चा मकान, मदद के इंतजार में गणेश मांडी
पहला मामला पोचापानी गांव के गणेश मांडी की है. गणेश मांडी अपनी पत्नी सावित्री मांडी, 13 वर्षीय बेटी सिनगो मांडी और 6 वर्षीय पुत्र राम मांडी के साथ तंबू में रहते हैं. सावित्री मांडी ने बताया कि करीब दो वर्षों से वे अपने परिवार के साथ तंबू में गुजर-बसर कर रहे हैं. इसी तंबू में वे कड़ाके की ठंड, गर्मी, आंधी, तूफान और बारिश सभी मौसम झेल चुके हैं. उन्होंने बताया कि अब तक किसी भी पदाधिकारी या जनप्रतिनिधि की नजर उन पर नहीं पड़ी है. सावित्री ने कहा कि उन्होंने कई बार आंबेडकर आवास योजना और प्रधानमंत्री आवास योजना के लिए आवेदन दिया है. सरकार आपके द्वार कार्यक्रम में भी जाकर आवास के लिए आवेदन करने के बावजूद अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है. ग्राम प्रधान लक्ष्मण मांडी ने कहा कि गांव में सभी लोगों के अपने-अपने घर हैं, लेकिन गणेश तंबू में रहकर अपने परिवार के साथ जीवन गुजार रहा है. यह देखकर काफी दुख होता है. उन्होंने प्रभात खबर से आग्रह किया कि यदि संभव हो तो इस गरीब और विवश परिवार को एक सरकारी आवास उपलब्ध कराया जाए. लगभग दो वर्ष पहले आंधी और बारिश से गणेश का कच्चा मकान ध्वस्त हो गया था. वह अत्यंत गरीब है. मजदूरी कर जीवन यापन करता है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

