गालूडीह .
80 के दशक में बेहतरीन फुटबॉलर रहे घाटशिला प्रखंड के बड़ाकुर्शी गांव निवासी मिहिर कुमार महतो को आज पेट के लिए मजदूरी करनी पड़ रही है. 1980 के आसपास मिहिर कुमार महतो के फुटबॉल खेल के लोग प्रशंसक थे. मिहिर ने बताया कि उन्होंने 18 साल की उम्र में गांव के सामने खाली मैदान में फुटबॉल खेलना शुरू किया. बचपन से फुटबॉल का शौक था. 1980 में बिहार राज्य सड़क परिवहन मनोरंजन के राइट आउट खिलाड़ी थे. वे बड़े स्तर पर कई फुटबॉल प्रतियोगिताओं में खेल चुके हैं. उन्हें कई अवॉर्ड भी मिले. वे जमशेदपुर के आरडी टाटा मैदान, टेंपल मैदान यानि कीनन स्टेडियम और रीगल मैदान में खेल चुके हैं.बच्चों व युवाओं को सिखाते हैं फुटबॉल के
गुर
मिहिर महतो ने बताया कि समय मिलने पर गांव व आस-पास के बच्चों व युवा खिलाड़ियों को फुटबॉल के गुर सिखाते हैं. हालांकि अब 50 वर्षीय मिहिर कुमार महतो को दो वक्त की रोटी के लिए मजदूर बनना पड़ा है. जब दारीसाई में क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र शुरू हुआ, तब महज 9.50 रुपये में माली का काम किया. 1987 से 1997 तक माली का काम किया. एक दिन अचानक उनकी चाची की तबीयत बिगड़ गयी. चाची को अस्पताल ले जाने के लिए उन्होंने केंद्र के तत्कालीन निदेशक के डी सिंह से गाड़ी मांगी. निदेशक ने पहले कहा, गाड़ी ले जाओ. गाड़ी लेने गया, तो इंकार कर दिया. इस बीच चाची की मृत्यु हो गयी. इस बात को लेकर निदेशक के साथ विवाद हुआ.षड्यंत्र कर मुझे काम से निकाला गया
मिहिर ने बताया कि षड्यंत्र कर मुझे काम से निकाल दिया गया. मैंने कोर्ट का शरण लिया. 2002 से 2008 में लेबर कोर्ट में केस चला. हाइकोर्ट का सहारा लिया. इसके बाद 2018 में केंद्र में बुलाया गया. 2019 में काम देने के लिए दस्तावेज पर हस्ताक्षर कराया गया. बाद में पता चला कि मुझे सीजन के हिसाब से मजदूरी पर रखा गया है, जबकि मैं रेगुलर वर्ग में माली था. मेरे सारे सहकर्मियों को परमानेंट कर दिया गया, लेकिन मुझे एक साधारण मजदूर का काम दिया गया.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

