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east singhbhum news:अधिकतर बांग्ला स्कूल खंडहर में तब्दील, पढ़ाई से वंचित हो रहे बच्चे

शिक्षक नहीं होने के कारण बांग्ला माध्यम की पढ़ाई बंद, बांग्ला मध्य विद्यालय को लेकर बांग्लाभाषी चिंतित

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मो.परवेज/ प्रकाश दास.

15 अप्रैल को बांग्ला नववर्ष है यानी पोयला बैशाख. बंगाली समाज के लोग उत्साह के साथ पोयला बैशाख मनाते हैं. पर एक बड़ी विडंबना है कि झारखंड गठन के बाद धीरे-धीरे सरकारी स्कूलों में बांग्ला भाषा का अस्तित्व ही मिट गया. बंगाली समाज के बच्चे अब अपनी मातृभाषा में स्कूली शिक्षा पाने से वंचित हो गये हैं. मजबूरन हिंदी और अंग्रेजी माध्यम से स्कूलों में शिक्षा हासिल कर रहे हैं. एक समय ऐसा था, खासकर पूर्वी सिंहभूम जो पश्चिम बंगाल की सीमावर्ती जिला है. यहां अधिकांश लोग बांग्ला भाषा में पढ़ाई करते थे. कई बांग्ला माध्यम से स्कूल आज भी धरोहर के रूप में स्थापित है, पर बंद होने से खंडहर में तब्दील हो चुका है. खंडहर बने इन बांग्ला माध्यम के स्कूल इस बात के गवाह है कि कभी यह आबाद था. सामाजिक ताने-बाने और संस्कृति यहां से विकसित होती थी. पर अब सब पीछे छुट चुकी है. इससे बंगाली समाज में नाराजगी तो है ही, उपर से चिंता भी है.

महुलिया में 1879 से संचालित था बांग्ला मवि, 2018 में बंद हो गया

घाटशिला प्रखंड के गालूडीह स्थित महुलिया बांग्ला मध्य विद्यालय 1879 में स्थापित सबसे पुराने बांग्ला माध्यम का विद्यालय था, जो 2018 में बंद हो गया. इसको लेकर बांग्लाभाषी चिंतित और आक्रोशित हैं. बांग्ला भाषियों में इस स्कूल की रक्षा के लिए आवाज उठानी शुरू हो गयी है. बांग्ला माध्यम की पुस्तकों की छपाई बंद होने और बांग्ला शिक्षक नहीं होने के कारण यहां बांग्ला माध्यम की पढ़ाई बंद हो गयी. 2018 में महुलिया बांग्ला मध्य विद्यालय को महुलिया आदर्श हिंदी मध्य विद्यालय में मर्ज कर दिया गया. आदर्श मध्य विद्यालय महुलिया की प्रधानाध्यापिका शिप्रा दत्ता ने बताया कि यह विद्यालय महुलिया बांग्ला मध्य विद्यालय के यू-डाइस कोड पर ही चल रही है, लेकिन यहां बांग्ला माध्यम की नहीं वरण हिंदी माध्यम में पढ़ाई होती है. बंगाली कल्चर से जुड़े लोगों ने बताया कि विद्यालय में बांग्ला की पढ़ाई छोड़कर हिंदी में पढ़ाई हो रही है इससे बांग्ला का अस्तित्व मिट रहा है. महुलिया बांग्ला मध्य विद्यालय को पुन: चालू करने की मांग उठने लगी है.

खंडहर बने महुलिया बांग्ला स्कूल को ऑडिटोरियम बनाने की योजना

खंडहर बने महुलिया बांग्ला मध्य विद्यालय को तोड़कर कवि गुरु रवींद्र नाथ टैगोर की स्मृति में ऑडिटोरियम बनाने की योजना है. कई मौकों पर स्कूली शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन इस बात को कह चुके हैं. जब वे विधायक थे तब से इस योजना पर काम कर रहे हैं. एक बार एक टीम भी आयी थी. मापी कर नक्शा भी बनाया था. पर तभी फंड की कमी से ठंडे बस्ते में चला गया. अब रामदास सोरेन शिक्षा मंत्री हैं. इस योजना को मूर्त रूप देने में जुटे हैं. पिछले दिनों रामदास सोरेन ने आदर्श मवि में आयोजित एक कार्यक्रम में आये थे. पुन: इस बात तो दोहराया था कि बांग्ला मवि के जर्जर भवन को तोड़कर कविगुरु रवींद्रनाथ टैगोर की स्मृति में ऑडिटोरियम का निर्माण जिला स्तर के लिए किया जायेगा. इससे बांग्ला भाषा की धरोहर बची रहेगी. उन्होंने यह भी कहा था कि बांग्ला समेत तमाम क्षेत्रीय भाषा में अब प्राइमरी से पीजी तक पढ़ाई सरकार करायेगी.

बंगाली समाज के बोल

बंगाली समाज की सबसे बड़ी समस्या अपनी मातृभाषा से दूर होना है. आज की युवा पीढ़ी बंगाली भाषा बोलने, पढ़ने और लिखने में रुचि नहीं ले रही है. इसके पीछे कई कारण हैं. स्कूलों में अंग्रेजी और हिंदी माध्यम की पढ़ाई का बढ़ता प्रभाव, जिससे बच्चे बांग्ला भाषा को कम महत्व देने लगे हैं.

-बासंती सिंह, ग्राम प्रधान, पायरागुड़ी

शिव शक्ति नाट्य संस्था गालूडीह द्वारा बांग्ला जात्रा हर साल आयोजित कर हमलोग बंगाली संस्कृति को बचाने की कोशिश कर रहे हैं. स्कूल मे बांग्ला की पढ़ाई हो चाहे ना हो अपने बच्चों को घर पर ही बांग्ला की शिक्षा दें. हमें बांग्ला भाषा और संस्कृति को बचाये रखने के लिए हरसंभव प्रयास करना चाहिए.

डॉ अमित चटर्जी, लोक कलाकार, गालूडीह

पहले बंगाली समाज में कला, संगीत, नृत्य, जात्रा और त्योहारों को बहुत महत्व दिया जाता था. अब ये परंपरा धीरे-धीरे खत्म होती जा रही हैं. इसके पीछे कई कारण हैं. नई पीढ़ी अब बांग्ला सांस्कृतिक आयोजनों में कम रुचि दिखा रही है. मोबाइल, इंटरनेट और सोशल मीडिया की वजह से युवा बंगाली संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं.

पुष्पल मांझी, लोक कलाकार, गालूडीह

आजकल माता-पिता सोचते हैं कि बच्चे अगर हिंदी या अंग्रेजी में शिक्षित होंगे तो उन्हें बेहतर अवसर मिलेंगे. बंगाली भाषा में रोजगार और सरकारी अवसरों की कमी है. इस कारण युवा अन्य भाषाओं को प्राथमिकता देने लगे हैं. डिजिटल युग में बंगाली साहित्य और पत्र-पत्रिकाओं की लोकप्रियता घट रही है.

निधिवन साहू, ग्रामीण, पायरागुड़ी

बंगाली समाज की सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए सरकारी सहयोग नहीं मिलता. इससे इनका आयोजन कठिन हो जाता है. अगर यही स्थिति बनी रही, तो भविष्य में बंगाली समाज की सांस्कृतिक पहचान खतरे में पड़ सकती है. बंगाली समाज से जुड़े मुद्दों को राजनीतिक स्तर पर अधिक महत्व नहीं दिया जाता.

शिखर ज्योति लोहरा, लेखक, गालूडीह

बंगाली समाज के लोग अपनी नयी पीढ़ी को बांग्ला भाषा और संस्कृति से जोड़े रखने को लेकर चिंतित हैं. सरकारी विद्यालयों में बांग्ला भाषा की पढ़ाई नहीं होने से यहां का बंगाली समुदाय अपनी विरासत बचाने की जद्दोजहद कर रहा है.

अनित मांझी, ग्रामीण, हेंदलजुड़ीB

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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