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East Singhbhum News : हरिजन, मुस्लिम और सबरों का नहीं बन रहा जाति व आवासीय प्रमाण पत्र, सुविधाओं से वंचित

घाटशिला में कई के पास खतियान नहीं, जिसके पास है, उसमें जाति का उल्लेख नहीं

मो.परवेज/ललन सिंह, घाटशिला

घाटशिला अनुमंडल में हरिजन, मुस्लिम और विलुप्त होती आदिम जनजाति सबरों का जाति और आवासीय प्रमाण पत्र नहीं बन रहा है. अधिकतर सबर और हरिजनों के पास जमीन का खतियान नहीं है. वहीं, मुस्लिम समाज के लोगों को पास खतियान तो है, लेकिन जाति का उल्लेख नहीं है. जाति के स्थान पर मुस्लिम या इस्लाम लिखा गया है. इसके कारण पेच है. कई बार संबंधित विभाग के मंत्री, सांसद और विधायक को जानकारी दी गयी. आजतक ठोस पहल नहीं हुई. कई वर्षों से ऐसी स्थिति है. ऐसे में उक्त समाज के बच्चों को योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है. इसपर जिम्मेदारों का ध्यान नहीं है.

झारखंड बनने के बाद शुरू हुई समस्या

हरिजनों और मुस्लिम समाज के लोगों ने कहा कि अविभाजित बिहार में ब्लॉक से जाति और आवासीय प्रमाण पत्र बन जाता था. झारखंड बनने के बाद प्रमाण पत्र बनना बंद है. कई सबर बस्तियों में बच्चों का जन्म प्रमाण पत्र नहीं बन रहा है. उनका आधार कार्ड नहीं बन रहा है.

मनोहर कॉलोनी में चार पीढ़ियों से रह रहे 4000 हरिजन परिवार

घाटशिला की मनोहर कॉलोनी में चार पीढ़ियों से चार हजार हरिजन परिवार निवास कर रहे हैं. कुछ के पास बंदोबस्ती पर्चा है, पर खतियान नहीं है. इसके कारण जाति और आवासीय प्रमाण पत्र नहीं बन रहा है. मनोहर कॉलोनी में 840 मतदाता हैं. यहां करीब 150 परिवार हैं. पहले रेलवे लाइन के निकट रहते थे. 1982 में कुछ लोगों को बिहार सरकार के समय भूमि बंदोबस्ती पर्चा मिला था. वहीं, कुछ लोगों को 1995-96 में पर्चा मिला था. उन्हें आवास का लाभ मिला था. हरिजन समाज के लोग बांस की सामग्री बनाकर बेचते हैं.

अंचल कार्यालय में 1964 का खतियान मांगा जाता है

मनोहर कॉलोनी के रघु कालिंदी, कृष्ण कालिंदी, गौतम कालिंदी, दशरथ कालिंदी, बबलू कालिंदी, रवि कालिंदी आदि ने बताया कि अंचल कार्यालय में 1964 का खतियान व डीड का मांगा जाता है. हमारे पास 1964 का खतियान नहीं है. बंदोबस्ती पर्चा है. सारथी कालिंदी, राजू कालिंदी, दिलीप कालिंदी, रेशमा कालिंदी, पूजा कालिंदी आदि ने कहा कि हमारे बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं. आवासीय व जाति प्रमाण पत्र नहीं बनने से सरकारी सुविधा से वंचित हैं. दीया कालिंदी ने कहा 9वीं कक्षा में पढ़ रही हूं. जाति और आवासीय प्रमाण पत्र नहीं बन रहा है.

–कोट–

वर्ष 1964 का खतियान व डीड के आधार पर ही जाति- आवासीय प्रमाण पत्र बनता है. झारखंड सरकार को जाति- आवासीय के लिए ग्राम सभा को अधिकार देना चाहिए. मनोहर कॉलोनी के कालिंदी-हरिजन परिवार गरीब हैं. जमीन का खतियान और डीड कहां से लायेंगे. उन्हें सरकार ने बंदोबस्ती पर्चा दिया है, उस आधार पर बनना चाहिए.

– बनाव मुर्मू, मुखिया, धरमबहाल पंचायत————————————-

मनोहर कॉलोनी के लोग आवेदन दें. इस मामले को देखते हैं कि क्या करने से बेहतर होगा. वैसे तो झारखंड सरकार का निर्देश है कि 1964 का खतियान या करीब 30 वर्ष पहले का डीड होना चाहिए, तभी जाति व आवासीय प्रमाण पत्र बनता है. गरीब तबके के लोग आवेदन दें. इस मामले में जिला से बात करेंगे.

– निशांत अंबर, सीओ, घाटशिला

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डेढ़ साल पहले मंत्री से मिला था मुस्लिम समाज, आश्वासन मिला पर पहल नहीं हुई

जून, 2023 में झारखंड सरकार के तत्कालीन अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के मंत्री हफीजुल हसन गालूडीह पहुंचे थे. तब मुस्लिम समाज के लोगों ने मिलकर अपनी समस्या रखी थी. उन्होंने आश्वासन दिया था, पर डेढ़ साल बाद भी पहल नहीं हुई. उनके साथ विधायक रामदास सोरेन भी उपस्थित थे. मुस्लिम समाज के लोगों ने कहा कि पहल नहीं होने से समाज के लोग सरकारी सुविधाओं से वंचित हैं.

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आधार कार्ड बनाने के लिए भटक रहे सबर

बड़ाकुर्शी पंचायत के दारीसाई-घटिया सबर बस्ती के सबर नये आधार कार्ड बनाने व पुराने में संशोधन के लिए भटक रहे हैं. बुधेश्वर सबर ने बताया कि कई बच्चों का जन्म कोविड 19 के समय हुआ है. बस्ती के ज्यादातर बच्चों का जन्म प्रमाण पत्र नहीं है. इसके कारण आधार कार्ड नहीं बन पा रहा है. बस्ती के चेड़े सबर (25), चांदमनी सबर (9), छाबी सबर (20), माणिक सबर (5), प्रकाश सबर (4), अष्टमी सबर (2), मंजरी सबर (20), संदीप सबर (5), दुखनी सबर (22), लालटू सबर (25), सुइटी सबर (2), गुलापी सबर (2) आधार कार्ड से वंचित हैं.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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