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पूर्वी सिंहभूम के नक्सल प्रभावित क्षेत्र के किसान नींबू और इमली की खेती कर बन रहे आत्मनिर्भर

पूर्वी सिंहभूम के नक्सल प्रभावित क्षेत्र के किसानों के लिए अच्छी खबर है. दरअसल, उद्योग विभाग उनके लिए कोल्ड स्टोरेज और प्रोसेसिंग प्लांट लगाएगा.

जमशेदपुर, ब्रजेश सिंह : पूर्वी सिंहभूम जिले में वैसे तो किसानी काफी बेहतर नहीं है, लेकिन यहां कई सब्जियों और अन्य उत्पाद से किसान आत्मनिर्भर बन रहे हैं. नक्सल प्रभावित रहे जिले के डुमरिया प्रखंड के बरुनिया गांव के किसान नींबू की खेती कर आत्मनिर्भर बन रहे हैं.

किसानों के लिए एफपीओ के माध्यम से लगेगा प्रोसेसिंग प्लांट और कोल्ड स्टोरेज

लेकिन नींबू के लिए कोल्ड स्टोरेज या प्रोसेसिंग की कोई व्यवस्था नहीं होने के कारण किसानों को नुकसान हो रहा है. ऐसे में अब किसानों ने उत्पादक संगठन (एफपीओ) के माध्यम से यहां प्रोसेसिंग प्लांट लगाने और कोल्ड स्टोरेज की स्थापना करने की तैयारी की है, ताकि मुनाफा बढ़ाया जा सके. इमली के पैदावार से भी यहां के किसान आर्थिक रूप से मजबूत हो रहे हैं. अब इमली के कारोबार को भी यहां दुरुस्त किया जा रहा है और एक सप्लाई चेन के अलावा इसका भी प्रोसेसिंग प्लांट स्थापित किया जा रहा है. एफपीओ की ओर से कराये गये सर्वे के मुताबिक, सिर्फ बरुनिया गांव में करीब 100 किसान नींबू की पैदावार में लगे हुए हैं, जिससे एक सीजन में औसतन 250 से 300 टन नींबू की पैदावार हो जाती है. एक बार गर्मी के मौसम में और दूसरी बार ठंड के मौसम में नींबू की फसल होती है. बरुनिया गांव में घर-घर लोग नींबू के पेड़ लगाये हुये हैं.

एफपीओ ने प्रोसेसिंग प्लांट के लिए उद्योग विभाग को भेजा प्रस्ताव

जानकारी के मुताबिक, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के कारोबारी यहां के किसानों से औने-पौने दाम पर नींबू की खरीदारी करते हैं. इससे किसानों को जितना फायदा होना चाहिए, उतना नहीं हो पाता है. साथ ही, उचित देखरेख नहीं होने के कारण एक सीजन में करीब 50 टन नींबू बर्बाद हो जाता है, क्योंकि यहां क्लोड स्टोरेज की व्यवस्था नहीं है. प्रोसेसिंग प्लांट के अभाव में नींबू का वैल्यू एडिशन नहीं हो पाता है. ऐसे में अब नींबू के लिए एफपीओ की ओर से एक प्रस्ताव उद्योग विभाग को भेजा गया है, जिसके माध्यम से यहां प्रोसेसिंग प्लांट लगाया जायेगा और कोल्ड स्टोरेज की भी स्थापना करने का प्रस्ताव दिया गया है.

डुमरिया में 100-150 टन इमली की होती है पैदावार

डुमरिया में इमली की करीब 100 से 150 टन पैदावार होती है. डुमरिया से लेकर घाटशिला और बहरागोड़ा के जंगलों में इसकी खूब पैदावार होती है. किसान और ग्रामीण इसको चुनकर और तोड़कर लाते हैं और इसे बेचकर अच्छी आमदनी करते हैं. हालांकि इसके रख-रखाव की कोई उचित व्यवस्था नहीं होने की वजह से ग्रामीण औने-पौने दाम पर इसे बेच देते हैं. ऐसे में ग्रामीणों की सहूलियत के लिए प्रोसेसिंग प्लांट लगाने की तैयारी चल रही है, ताकि इमली का अपग्रेडेशन किया जा सके. मुख्य तौर पर इन सारे प्रोसेसिंग प्लांट के जरिये सोर्टिंग, ग्रेडिंग और पैकिंग हो सकेगी, ताकि ज्यादा समय तक ये उत्पाद रह सके और इसको बेहतर तरीके से अंतिम उपभोक्ता तक पहुंचाया जा सके.

प्रोसेसिंग प्लांट और कोल्ड स्टोरेज बन जाये, तो किसानों की आमदनी बढ़ जायेगी : पदाधिकारी

एफपीओ के जिला स्तर के पदाधिकारी का कहना है कि इस इलाके में नींबू और इमली की पैदावार इतनी होती है कि इसको दूसरे राज्यों के लोग ले जाते हैं और अपने मन मुताबिक कीमत पर शहरों में बेचते हैं. 300 नींबू 150 रुपये के हिसाब से ले जाते हैं, जबकि बाजार में तीन नींबू की कीमत लगभग 20 रुपये है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि किसानों को कितना मुनाफा हो रहा है और कारोबारी कितना कमा रहे हैं. अगर प्रोसेसिंग प्लांट और कोल्ड स्टोरेज बन जाये, तो निश्चित तौर पर किसानों की आमदनी बढ़ जायेगी.

क्या कहते हैं किसान

नींबू की खेती से अपना और परिवार की जिंदगी बदल गयी है. नींबू का उत्पादन करने से अब वे दूसरे किसानों के लिए रोल मॉडल बन गये हैं. लोग उनसे प्रेरणा लेकर नींबू की खेती कर रहे हैं. – शिवचरण पाड़ेया
वे पहले नारियल की खेती करते थे. लेकिन अब उन्होंने नींबू की खेती करना शुरू किया, जिससे उनकी आमदनी बढ़ गयी है. परिवार में खुशी लौट आयी है. – राजकिशोर महतो

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Kunal Kishore
Kunal Kishore
कुणाल ने IIMC , नई दिल्ली से हिंदी पत्रकारिता में पीजी डिप्लोमा की डिग्री ली है. फिलहाल, वह प्रभात खबर में झारखंड डेस्क पर कार्यरत हैं, जहां वे बतौर कॉपी राइटर अपने पत्रकारीय कौशल को धार दे रहे हैं. उनकी रुचि विदेश मामलों, अंतरराष्ट्रीय संबंध, खेल और राष्ट्रीय राजनीति में है. कुणाल को घूमने-फिरने के साथ पढ़ना-लिखना काफी पसंद है.

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