घाटशिला : एक करोड़ का इनामी शीर्ष माओवादी नेता असीम मंडल उर्फ आकाश उर्फ राकेश जी सरेंडर कर देंगे या घाटशिला क्षेत्र से दूसरे राज्य में भाग निकलेंगे, इसपर सस्पेंस बरकरार है. बंगाल सरकार और पुलिस उसके सरेंडर को लेकर प्रयासरत है, लेकिन माओवादी नेता की ओर से कोई जवाब नहीं आ रहा है. इससे यह साफ नहीं हो पा रहा है कि वह निकट समय में सरेंडर करेगा, या पुलिस-सरकार को धोखे में रख कहीं निकल जायेगा.
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शीर्ष माओवादी नेता आकाश सरेंडर करेगा या भाग निकलेगा पर सस्पेंस
घाटशिला : एक करोड़ का इनामी शीर्ष माओवादी नेता असीम मंडल उर्फ आकाश उर्फ राकेश जी सरेंडर कर देंगे या घाटशिला क्षेत्र से दूसरे राज्य में भाग निकलेंगे, इसपर सस्पेंस बरकरार है. बंगाल सरकार और पुलिस उसके सरेंडर को लेकर प्रयासरत है, लेकिन माओवादी नेता की ओर से कोई जवाब नहीं आ रहा है. इससे […]
एसपी भारती घोष निभा रही अहम भूमिका: खबर है कि पश्चिमी मेदिनीपुर की एसपी व झाड़ग्राम की एसपी इंचार्ज भारती घोष नक्सलियों को सरेंडर कराने में अंदर ही अंदर अहम भूमिका निभा रही है. खबर है कि ममता सरकार को उसपर काफी भरोसा है. ममता बनर्जी जब मुख्यमंत्री बनी, तो भारती घोष 2011 में झाड़ग्राम की एएसपी बनी. इसके बाद 2013 में उसे झाड़ग्राम का एसपी बनाया गया. फिर 2014 में वह पश्चिमी मेदनीपुर की एसपी बनी. झाड़ग्राम की प्रभारी एसपी बनायी गयी. बंगाल पुलिस सूत्र बताते हैं कि जब से भारती घोष झाड़ग्राम संभाली है, तब से इस क्षेत्र में नक्सलवाद पर अंकुश लगा है.
नक्सली घटनाएं बंद हो गयी है. 24 घंटे वह जंगल महल की निगरानी रखती है. नाकाबंदी अभियान चलाती रहती है. सिर्फ झाड़ग्राम थाना क्षेत्र में उन्होंने सरकार के निर्देश पर 831 एसपीओ बनाया. अन्य थाना क्षेत्र में भी एसपीओ बनाया. इसके अलावे ग्रामीण पुलिस बनाकर युवाओं को गांव की निगरानी में लगा दिया. रात में वैसे युवा कल्वर्ट, पुलिया के नीचे सोते हैं. कोई पोस्टर तक नहीं साट सकता. नक्सली घटना की बात तो दूर. भारती घोष के प्रयास से पहले जागुरी किस्कू, राजाराम ने सरेंडर किया तो हाल में जयंतो समेत सात ने सरेंडर किया. अब फोकस माओवादी नेता आकाश पर है.
झारखंड और बंगाल पुलिस के दबाव से संगठन में आया बिखराव
सरेंडर करने की उम्मीद कम
भरोसेमंद सूत्रों की माने, तो आकाश जी कट्टर सीपीआइ माओवादी नेता है. कई दशक से संगठन से जुड़े हैं. वर्तमान में बंगाल स्टेट कमेटी के सचिव है. निकट समय में केंद्रीय कमेटी सदस्य और पोलित ब्यूरो बन सकता है. वह यादवपुर विवि के छात्र रह चुका है. अंग्रेजी, हिंदी, बांग्ला भाषा का जानकार है. अपना सब कुछ नक्सल आंदोलन में झोंक चुका है. वर्षों तक जंगलों में खाक छानने वाले इतनी आसानी से सरेंडर कर देगा, इसकी उम्मीद कम है. सरेंडर नहीं करने के पीछे एक और बड़ा कारण किशनजी का मारा जाना हो सकता है. संगठन यह मानता है कि तृणमूल सरकार ने षड्यंत्र रच कर किशनजी की हत्या करवायी. अब उसी सरकार के समक्ष वह सरेंडर करेगा, इसकी उम्मीद कम है.
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