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दुर्लभ होता जा रहा जामुन का पेड़

चाकुलिया : अवैध पातन से जंगलों में औषधीय वृक्ष जामुन की संख्या काफी हम हो गयी है. बड़े आकार का फल देने वाले जामुन वृक्षों की संख्या नहीं के बराबर है. अलबत्ता छोटे फल देने वाले जामुन के कुछ वृक्ष अवश्य बचे हुए हैं.एक समय था जब जामुन के वृक्ष ग्रामीणों की आमदनी का स्रोत […]

चाकुलिया : अवैध पातन से जंगलों में औषधीय वृक्ष जामुन की संख्या काफी हम हो गयी है. बड़े आकार का फल देने वाले जामुन वृक्षों की संख्या नहीं के बराबर है. अलबत्ता छोटे फल देने वाले जामुन के कुछ वृक्ष अवश्य बचे हुए हैं.एक समय था जब जामुन के वृक्ष ग्रामीणों की आमदनी का स्रोत हुआ करते थे. हर साल जामुन बेच कर ग्रामीण आर्थिक लाभ प्राप्त करते थे.
जंगलों से जामुन वृक्षों का गायब होना ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा झटका है. ज्ञात हो कि जामुन के बड़े आकार वाले फल इन दिनों बड़े शहरों में 100 से 150 रुपये प्रति किलो के भाव से बिक रहे हैं, मगर वृक्षों के कम होने के कारण मांग के अनुरूप आपूर्ति नहीं हो पा रही है.
कुछ साल पहले तक क्षेत्र से बड़े शहरों में जामुन की खासी आपूर्ति हुआ करती थी. जंगलों में जाकर ग्रामीण जामुन तोड़ कर स्थानीय व्यापारियों को बेचते थे. जामुन खरीदने के लिए व्यापारी गांव जाते थे. ग्रामीणों को अग्रिम राशि भी देते थे.
यहां का जामुन पश्चिम बंगाल और ओड़िशा के शहरों में भी भेजे जाते थे, मगर आज स्थिति यह है कि जंगलों में वृक्षों के कम होने के कारण जामुन के फल कम मिल रहे हैं. जो वृक्ष बचे हैं, उसके फल काफी छोटे होते हैं. इसकी मांग कम है. ग्रामीण कहते हैं कि अब बड़े आकार के फल देने वाले जामुन के वृक्षों की संख्या काफी कम हो गयी है. यही हाल रहा, तो जामुन का वृक्ष वनों से विलुप्त हो जायेगा.

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