चाकुलिया : पतझड़ के मौसम में गर्मी की दस्तक के साथ जंगलों में आग लगने का सिलसिला शुरू हो जाता है. इसका असर जंगली छोटे-मोटे जानवरों पर होता है. आगजनी में सर्वाधिक नुकसान साल के पौधों व काजू की फसल को होता है. साल जंगल में आग लगने की कई घटनाएं हो चुकी हैं. वन विभाग के पास जंगल की आग को काबू में करने का कोई ठोस उपाय नहीं हैं. आग बुझाने का जिम्मा वन सुरक्षा समितियों पर है. संसाधनों की कमी के कारण वन सुरक्षा समिति के लोग आग बुझाने में कारगर नहीं हैं. इनके प्रयास से कुछ हद तक आग पर काबू पाया जाता है. पतझड़ के कारण वृक्षों के पत्ते झड़ते हैं. ऐसे में आग लगने से तेजी से फैलती है. आग लगने का सबसे प्रमुख कारण ग्रामीणों द्वारा महुआ फूल चुनने के लिए महुआ वृक्ष के नीचे सफाई के लिए लगायी आग है.
हवा के झोंके से यही आग जंगल में फैल जाती है. चाकुलिया वन क्षेत्र काजू के लिए विख्यात है. इस वन क्षेत्र में 2200 सौ हेक्टेयर से अधिक भूमि पर काजू के वृक्ष हैं. इन दिनों काजू के वृक्ष फूलों से लदने लगे हैं. कुछ दिनों बाद फलों से लद जायेंगे. ऐसे में काजू वन में आग लगने से फल और फूलों को भारी नुकसान होता है. काजू के उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ता है. फायर लाइन के तहत विभाग से 1.6 लाख रुपये का आवंटन प्राप्त हुआ है. कुछ समितियों के खाता में भुगतान कर दिया गया है. विभाग की निगरानी में वन सुरक्षा समितियों द्वारा ही भुगतान होगा. जंगल में आग न लगे इसके लिए अग्नि प्रभावित इलाकों के जंगलों के पास फायर लाइन की सफाई का कार्य जारी है.