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Bottom News : जागरूक बनें समाज के लोग, नहीं तो मिट जायेगा अस्तित्व

समाज को सशक्त बनाने और केंद्र सरकार तक मजबूती से अपनी बातों को पहुंचाने का संकल्प लिया. पहाड़िया मुक्ति सेना के सचिव गयालाल देहरी ने कहा कि देश की आजादी के पहले जो वनभूमि आदिम जनजातियों के पास थी. इससे वे अपना गुजर-बसर आसानी से कर ले रहे थे, उस वनभूमि को सरकार वन अधिनियम 2008 को आधार बना कर हमसे छीन रही है.

पहाड़िया मुक्ति सेना ने अर्जुन गृही का मनाया शहादत दिवस, बोले सचिव गयालाल देहरी

संवाददाता, दुमका

पहाड़िया मुक्ति सेना ने सोमवार को अर्जुन गृही का शहादत दिवस दुमका में मनाया. जीवन-संघर्ष को याद किया. समाज को सशक्त बनाने और केंद्र सरकार तक मजबूती से अपनी बातों को पहुंचाने का संकल्प लिया. पहाड़िया मुक्ति सेना के सचिव गयालाल देहरी ने कहा कि देश की आजादी के पहले जो वनभूमि आदिम जनजातियों के पास थी. इससे वे अपना गुजर-बसर आसानी से कर ले रहे थे, उस वनभूमि को सरकार वन अधिनियम 2008 को आधार बना कर हमसे छीन रही है. इससे पहाड़िया आदिम जनजातियों के जीवन का आधार ही नहीं रह जायेगा. श्री देहरी ने कहा कि संताल परगना मैनुअल के पृष्ठ संख्या 457 में दो नवंबर 1894 को गर्वनमेंट ऑफ बंगाल रेवेन्यू डिपार्टमेंट फोरेस्ट के नोटिफिकेशन 4448 के द्वारा जो जमीनें अधिग्रहित की गयीं, वह सौरिया कंट्री की जमीनें हैं. वर्तमान में उन जमीनों पर अंग्रेज द्वारा लाये गये लोगों के नाम पर बंदोबस्ती कर दी गयी है, जो बची है, उनमें वनभूमि का पट्टा दे रही है. पहाड़िया समाज आज खुद भूमिहीन व मिटने के कगार पर पहुंच चुका है. श्री देहरी ने कहा कि अंग्रेज शासकों ने तो पहाड़िया को संरक्षण देने के लिए 1782 में पहाड़िया परिषद व पहाड़िया बटालियन गठित किया था, जबकि 1823 में दामिन-इ-कोह क्षेत्र हमारे लिए आरक्षित किया था. कहा कि अंग्रेजों के आने के पहले पहाड़िया राजा थे. जिले में गांदो में अवस्थित राजमहल का खंडहर, रानीबगान व शिवसुंदरी रोड इसके गवाह रहे हैं. पर आज वहीं पहाड़िया देश की आजादी के बाद भारत सरकार के अधीन भिखारियों-सी जिंदगी जी रहे हैं. इस अवसर पर अन्य वक्ताओं ने समाज की इस स्थिति के लिए खुद को भी जिम्मेदार माना. कहा कि बिना पढ़े-लिखे हमारे पूर्वजों ने न केवल पहाड़ व जमीन को संरक्षित किए रखा, बल्कि इसे बचाने के लिए अंतिम दम तक संघर्ष किया, लेकिन आज समाज के अधिकांश लोग शराब के नशे में रहते हैं. पढ़-लिख कर भी न तो अपनी न समाज की चिंता नहीं कर रहे. कहा कि हमें जागना होगा. तभी पहाड़िया आदिम जनजाति बचेगा, अन्यथा हमारा अस्तित्व भी समाप्त हो जायेगा.

राष्ट्रपति, पीएम व मंत्री के नाम ज्ञापन आयुक्त को सौंपा

कार्यक्रम को गयालाल के अलावा दुमका-पाकुड़ सहित अन्य जिलों से आये लोगों ने भी संबोधित किया. सभा के बाद राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा वन एवं पर्यावरण मंत्री भारत सरकार के नाम आयुक्त को ज्ञापन सौंपा गया और संताल परगना में मूल निवासी पहाड़िया आदिम जनजाति को वन भूमि का पट्टा देने की मांग की. इस दौरान बुद्धिनाथ देहरी, विपना देहरी, मणिकांत देहरी, माणिक देहरी, देवेंद्र देहरी, दिनेश्वर देहरी, डोंबा पहाड़िया, हजरत मालतो आदि मौजूद थे. फ्री चावल देकर हमें जीने-मरने के लिए सरकार ने छोड़ा, जिस वनभूमि के सहारे किसी तरह गुजर-बसर कर रहे. वह भी छीना जा रहा है.

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