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मांझी-परगना सरदार महासभा की बड़े आंदोलन की तैयारी

संताल सिविल रूल्स की समीक्षा व संशोधन के विरोध को लेकर रणनीति तैयार. संताल परगना के जामताड़ा, देवघर, दुमका, पाकुड़, साहिबगंज और गोड्डा जिलों से प्रतिनिधि एवं सामाजिक प्रमुख उपस्थित हुए.

दुमका. मांझी परगना सरदार महासभा संताल परगना की ओर से रविवार को दुमका परिसदन भवन में प्रमंडलीय बैठक आयोजित की गयी. अध्यक्षता लिट्टीपाड़ा पाकुड़ के परगना छूतार किस्कू ने की, जबकि संचालन प्रेमचंद किस्कू ने किया. बैठक में संताल परगना के जामताड़ा, देवघर, दुमका, पाकुड़, साहिबगंज और गोड्डा जिलों से प्रतिनिधि एवं सामाजिक प्रमुख उपस्थित हुए. बैठक में मुख्य रूप से संताल सिविल रूल्स 1946 एवं संताल परगना जस्टिस रेग्युलेशन 1893 में सरकार द्वारा प्रस्तावित समीक्षा एवं संशोधन पर विस्तृत चर्चा हुई. प्रतिनिधियों ने एकमत होकर कहा कि प्रशासन की ओर से प्रस्तावित संशोधन संताल एवं पहाड़िया समाज की पारंपरिक व्यवस्था के खिलाफ है और इसे समाप्त करने की साजिश प्रतीत होती है. प्रतिनिधियों ने आरोप लगाया कि संशोधन प्रक्रिया में मांझी, जोगमांझी, नाईकी, कुड़ाम नाईकी, प्राणिक सहित पारंपरिक भूमिकाओं को दरकिनार कर केवल राजस्व पदों को प्राथमिकता दी गयी है, जो सामाजिक व्यवस्था के विपरीत है. वक्ताओं ने कहा कि संताल और पहाड़िया समाज में बिना पारंपरिक पदाधिकारियों के कोई भी सामाजिक कार्यक्रम संभव नहीं होता, इसलिए उनकी उपेक्षा स्वीकार्य नहीं है. बैठक में यह निर्णय लिया गया कि संताल परगना के सभी जिलों में प्रस्तावित संशोधनों के विरोध में चरणबद्ध आंदोलन चलाया जाएगा. आंदोलन स्व. डॉ बासुदेव बेसरा द्वारा स्थापित मांझी परगाना सरदार महासभा के बैनर तले संचालित होगा. निर्णय लिया गया कि आगामी 14 दिसंबर को दुमका परिसदन में विस्तृत बैठक आयोजित की जाएगी, जिसमें आंदोलन संचालन के लिए प्रमंडलीय समिति का गठन किया जाएगा. बैठक में प्रमुख रूप से राष्ट्रपति पुरस्कृत सेवानिवृत्त शिक्षक एवं महासभा जामताड़ा संरक्षक सुनील कुमार बास्की, सेवानिवृत्त डीएसपी सह मांझी बाबा सनत कुमार सोरेन, मांझी बाबा लच्छु मुर्मू, बाबूजी मुर्मू, सतीश सोरेन, बिर मांझी हराधन मुर्मू, मुखिया सुखेंद्र टुडु, सर्जन हांसदा, नजीर सोरेन, स्टीफन हेंब्रम, सेवानिवृत्त शिक्षक लेबेन हांसदा, एमएलए मरांडी सहित अन्य कार्यकर्ता उपस्थित थे. आंदोलन की मुख्य मांगें : – संताल सिविल रूल्स 1946 एवं संताल परगाना जस्टिस रेग्युलेशन 1893 में संशोधन का विरोध – पेसा कानून 1996 को हू-ब-हू लागू करना – पारंपरिक संस्थानों (मांझी, जोगमांझी, नाईकी, प्राणिक आदि) को सम्मान राशि प्रदान करना – सामाजिक पदों पर बाहरी व्यक्तियों के हस्तक्षेप पर रोक – संताल परगना के सभी जिलों का पारंपरिक आधार पर पुनःनामकरण

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