काठीकुंड. कोरोना काल ने कई परिवारों को तबाह किया, उन्हीं में से एक हैं काठीकुंड प्रखंड के आस्ताजोड़ा पंचायत स्थित पथराकुंडी गांव की लीलू बीबी. 2019 में महामारी ने उनके पति मोहम्मद नजरुल को छीन लिया. पति दिहाड़ी मजदूरी कर किसी तरह परिवार का भरण-पोषण करते थे, लेकिन असमय मृत्यु ने लीलू को दो मासूम बेटियों संग अकेला छोड़ दिया. आज उनका सहारा केवल विधवा पेंशन की मामूली रकम और दूसरों के घरों में झाड़ू-पोंछा कर कमाए गए चंद पैसे हैं. लीलू बीबी की बड़ी बेटी कायनात परवीन पांचवीं कक्षा में और छोटी बेटी नायरा खातून आंगनबाड़ी में पढ़ती है. मां चाहती हैं कि बेटियों को बेहतर शिक्षा और अच्छा भविष्य मिले, पर गरीबी की मार ने उनके सपनों पर पहरा डाल दिया है. मिट्टी से बने दो कमरों का घर बरसात में टपकता है. दीवारें धंस रही हैं. लीलू बताती हैं कि बरसात की रातों में बच्चियों को गोद में बैठाकर पानी से बचाती हैं, ताकि वे बीमार न पड़ें. भय हमेशा बना रहता है कि कहीं दीवार गिर न जाये. आवास के लिए लगा चुकी है गुहार, नहीं हो रही पहल सबसे बड़ी विडंबना यह है कि अब तक उन्हें न प्रधानमंत्री आवास योजना और न ही अबुआ आवास योजना का लाभ मिला. पंचायत से बार-बार गुहार लगाने पर सिर्फ आश्वासन ही मिला. ग्रामीण भी इस उपेक्षा से आक्रोशित हैं और कहते हैं कि अगर इतनी गरीब व असहाय महिला को आवास योजना का लाभ नहीं मिलेगा, तो फिर किसे मिलेगा. लीलू बीबी की आंखों में केवल बेटियों का भविष्य बसता है. वह कहती हैं-“मेरी बच्चियां पढ़-लिखकर अपने पैरों पर खड़ी हों, यही सपना है.” गांववाले जिला प्रशासन से तत्काल संज्ञान लेने और उन्हें आवास व बच्चियों की पढ़ाई के लिए मदद उपलब्ध कराने की मांग कर रहे हैं. कोट अगर आवास लाभुकों की सूची में उनका नाम है. प्रक्रिया के तहत आवास योजना से उन्हें जरूर आच्छादित किया जायेगा. स्थल निरीक्षण व वस्तुस्थिति का पता किया जायेगा. अनूप कुमार, आवास को-ऑर्डिनेटर
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