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तीन दिनों तक पैदल चले, गांव है 540 किमी दूर 22 युवाओं को दुमका में मिला आश्रय

बंगाल की पुलिस ने उन्हें खदेड़ना ही शुरू नहीं किया, बल्कि वहां खाने-पीने की भी परेशानी होने लगी. ऐसे में उन्हें यही बेहतर लगा कि जैसे भी हो, गांव चला जाये.

दुमका : बिहार के सहरसा जिले के राजा सोनवर्षा प्रखंड के 22 युवाओं को पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के बुधुपट्टी कोलोनी में इस लॉकडाउन की स्थिति में रहना मुश्किल हो गया, तो इन युवाओं की टोली ने पैदल ही अपने गांव लौटने का फैसला किया. गाड़ी चल नहीं रही थी. रेल सेवायें भी लॉकडाउन में ठप है.

ऐसे में उनके पास रास्ता एक ही था. पैदल चलने का. हुगली में जिस जगह ये लोग 350-400 रूपये की दिहाड़ी मजदूरी करते थे, वहां से अपने गांव की दूरी थी 540 किमी. हुगली से पैदल चलकर वे लोग वर्धमान पहुंचने में पूरा एक दिन लग गया. दूसरे दिन बर्धमान में इन युवाओं की टोली पर एक अफसर की नजर पड़ी तो उनका दिल पसीज गया.

उन्होंने एक गाड़ी का इंतजाम ही नहीं कराया, बल्कि 2000 रूपये भी दिये. जिसने उन्हें झारखंड सीमा से सटे सेवड़ाकुली वीरभूम तक छोड़ दिया. उनलोगों ने फिर पैदल यात्रा शुरू कर और दुमका तक पहुंचे. तीन दिनों से चल रहे इनमें से कुछ युवाओं ने बताया कि लॉकडाउन होने के बाद बंगाल की पुलिस ने उन्हें खदेड़ना ही शुरू नहीं किया, बल्कि वहां खाने-पीने की भी परेशानी होने लगी. ऐसे में उन्हें यही बेहतर लगा कि जैसे भी हो, गांव चला जाये.

रास्तें में विभिन्न जिलों के बार्डर में परेशानी भी हुई. पर दुमका पहुंचने पर उन्हें प्रशासनिक स्तर पर आश्रय दिया गया और राही राहत केंद्र में ठहराने की व्यवस्था दी गयी. सहरसा के इन युवाओं ने दुमका जिला प्रशासन के प्रति धन्यवाद भी अर्पित किया है और कहा कि ऐसी व्यवस्था शायद बंगाल में उपलब्ध करायी गयी होती, तो वे वहां से भागने को मजबूर न हुए होते.

यहां ठहराने के अलावा प्रशासन खाना भी उपलब्ध कराने की बात कह रहा है. लेकिन अब जबकि वे काम के ठिकाने से निकल चुके हैं और घरवाले भी चिंतित हो रहे, लिहाजा वे लोग आराम करने के बाद सहरसा वापस निकल जायेंगे. रंजीत भगत व सुरेंद्र महतो जैसे युवाओं ने बताया कि काफी अधिक पैदल चलने की वजह से पांव में छाले पड़ गये हैं तथा सूजन भी आ गया है. इन युवाओं ने कहा कि झारखंड प्रशासन जाने की सुविधा दिला दे तो मेहरबानी होगी. नहीं तो पैदल वे लोग जैसे भी हो, घर पहुंचेंगे.

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