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गुरु शिष्य के महापर्व दासांय 30 को मनाने का लिया निर्णय

विभिन्न सुदूरवर्ती गांवों से दासांय नृत्य कला दलों को आमंत्रित किया गया है. सभी कला दलों को बैसी से पुरस्कृत और सम्मानित किया जायेगा. दासांय पर्व सदियों से चले आ रहे आदिवासी संस्कृति का पहचान है.

संवाददाता, दुमका सदर प्रखंड के मकरो गांव में खेरवाड़ सांवता एवेन बैसी और ग्रामीणों ने संताल आदिवासियों के गुरु शिष्य का महापर्व दासांय को लेकर बैठक की. पर्व 30 सितंबर को मनाने का निर्णय लिया गया. इस अवसर पर विभिन्न सुदूरवर्ती गांवों से दासांय नृत्य कला दलों को आमंत्रित किया गया है. सभी कला दलों को बैसी से पुरस्कृत और सम्मानित किया जायेगा. दासांय पर्व सदियों से चले आ रहे आदिवासी संस्कृति का पहचान है. इस पर्व में गुरु बोंगा की पूजा जाती है. दासांय पर्व के माध्यम गुरु अपने शिष्यों को बीमारियों का ईलाज,जड़ी-बुटी,धर्म, तंत्र-मन्त्र आदि सिखाते हैं. मंत्र विद्या सीखने के बाद गुरु शिष्य मिलकर अगल-बगल के गांवों में घूम घूम कर भिक्षाटन करते हैं. दासांय नृत्य कर इष्ट देवी देवता ठकुर और ठकरन का गुणगान करते और घर और गांव में सुख-शांति का कामना करते हैं. यह पर्व संताल समुदाय को गुरु शिष्य परंपरा को बनाये रखने की सीख देता है. इस अवसर पर मनोहर मरांडी, प्रेम मरांडी, गोविंद मुर्मू, परमेश्वर मुर्मू, मदन टुडू, नटुआ हांसदा, सुबोधन मरांडी, बिराम मुर्मू आदि उपस्थित थे.

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