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मसानजोर के राजपाड़ा घाट में केज कल्चर योजना दम तोड़ चुकी, मत्स्यपालकों की टूटी उम्मीदें

पिछले तीन वर्षों से योजना पूरी तरह ठप पड़ी है. इस स्थिति ने न केवल मत्स्यपालकों की उम्मीदों को तोड़ा है, बल्कि क्षेत्र के आर्थिक और सामाजिक जीवन पर भी गहरा असर डाला है.

दलाही. दुमका जिले के मसानजोर डैम का राजपाड़ा घाट, जो कभी मत्स्य उत्पादन और स्थानीय युवाओं के रोजगार का अहम केंद्र था, आज उपेक्षा का शिकार हो चुका है. राज्य सरकार और मत्स्य विभाग की महत्वाकांक्षी “केज कल्चर ” योजना, जो मत्स्यपालकों की आर्थिक स्थिति सुधारने और बेरोजगार युवाओं को रोजगार से जोड़ने की दिशा में मील का पत्थर मानी जा रही थी, पिछले तीन वर्षों से पूरी तरह ठप पड़ी है. इस स्थिति ने न केवल मत्स्यपालकों की उम्मीदों को तोड़ा है, बल्कि क्षेत्र के आर्थिक और सामाजिक जीवन पर भी गहरा असर डाला है. वित्तीय वर्ष 2017-18 में मसलिया प्रखंड के कोलरकोंदा पंचायत अंतर्गत राजपाड़ा घाट में केज कल्चर योजना की शुरुआत बड़े उत्साह के साथ हुई थी. विभाग ने मत्स्यपालकों को केज, मछवारा घर और बोट सहित सभी जरूरी सुविधाएं उपलब्ध करायी थीं. शुरुआती दिनों में इस योजना ने मत्स्य उत्पादन और आय दोनों में बढ़ोतरी की. पंगास प्रजाति की मछलियां केज में डालकर मत्स्यपालक अच्छी कमाई करने लगे, लेकिन तीन साल से मरम्मत और देखरेख के अभाव में केज टूटकर बेकार हो गए और हजारों मछलियां पानी में बह गयीं. राजपाड़ा जलाशय समिति से जुड़े मत्स्यपालक दिलीप मुर्मु, पौलुस मुर्मु और सुरेंद्र सोरेन बताते हैं कि इस योजना ने दर्जनों युवाओं को रोजगार दिया था. नियमित ताजी मछलियां मिलने से स्थानीय बाजार भी गुलजार थे, लेकिन अब विभागीय के साथ मत्स्य पालकों के उदासीनता के कारण लाखों की लागत वाली यह योजना शोभा की वस्तु बनकर रह गयी है. मत्स्यपालकों का कहना है कि पिछले तीन साल से केज, मछवारा घर और बोट सबकुछ डैम किनारे सड़ रहा है, जिससे उनकी आजीविका पर संकट गहरा गया है. मत्स्यपालकों ने विभाग से मांग की है कि केज कल्चर योजना की मरम्मत कराकर इसे फिर से शुरू किया जाए. उनका कहना है कि पर्याप्त जल और संसाधन उपलब्ध होने के बावजूद महज देखरेख के अभाव में यह योजना बर्बाद हो रही है. यदि इसे पुनः चालू किया जाए तो स्थानीय युवाओं को दोबारा रोजगार मिलेगा और क्षेत्र में मत्स्य उत्पादन भी बढ़ेगा. मत्स्यपालकों ने चेतावनी दी है कि यदि शीघ्र कार्रवाई नहीं की गयी तो यह महत्वाकांक्षी योजना पूरी तरह इतिहास बन जाएगी और सरकार की लाखों की लागत बेकार चली जाएगी.

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