रामगढ़.
माता-पिता सहित सभी अभिभावकों को अपने बच्चों को बचपन से ही अच्छे संस्कार देने चाहिए. बचपन में मिले संस्कार जीवन भर बने रहते हैं. छोटी रण बहियार में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के वर्णन के दौरान कथा व्यास अभयानंद अभिषेक शास्त्री ने बालक ध्रुव, भक्तराज प्रह्लाद, भगवान राम आदि के प्रसंगों का सरस वर्णन करते हुए कहा कि परमात्मा की प्राप्ति ही मानव जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य होना चाहिए. भगवत प्राप्ति के संस्कार बचपन से ही बालक ध्रुव को उसकी माता द्वारा मिले थे. ध्रुव चरित्र का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि सत्य से बढ़कर कोई धर्म नहीं. गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि कर्मों का फल अवश्य ही मनुष्य को मिलता है. मनुष्यों को बिना किसी लालच के धर्म द्वारा निर्धारित कर्तव्यों का पालन करना चाहिए. उन्होंने कहा कि ज्ञान योग, भक्ति योग तथा निष्काम कर्म योग तीनों ही भगवत प्राप्ति के मार्ग हैं. उन्होंने कहा कि बालक ध्रुव ने माता के गर्भ में ही नारायण नाम का मंत्र सुन लिया था. जब उनका जन्म हुआ तो उन्होंने इसी नारायण नाम के मंत्र से सर्वोच्च पद को प्राप्त किया. आज हमारे देश के बच्चों को संस्कार का ज्ञान देना बहुत जरूरी है. इसका प्रत्यक्ष प्रमाण ध्रुव हैं. मात्र पांच वर्ष की उम्र में उन्होंने जो काम किया वह उनके संस्कार का ही परिणाम था. बच्चों में ऐसे संस्कार डालने चाहिए. इसकी शुरुआत बाल्य काल में ही करनी चाहिए क्योंकि बाल्यकाल के संस्कार का जीवन पर अमिट प्रभाव पड़ता है. बालक अपने मां-बाप की सेवा करें. समाज में प्रेम से सद्भावना के साथ रह सकें, ऐसे संस्कार बचपन में ही डाले जाने चाहिए. परिवार और समाज की एकता को आज बनाने की आवश्यकता है. हम बड़ी-बड़ी बातें ना कर छोटे-छोटे लेकिन महत्वपूर्ण सुधार करके जीवन में खुशियां प्राप्त करने के लिए बच्चों को संस्कारवान बनाएं. बच्चों में प्रभु की भक्ति का संस्कार भी बचपन से ही डालें. कथा के अंतराल में कलाकारों ने कथा प्रसंग से संबंधित विविध प्रकार की मनमोहक झांकियां प्रस्तुत की.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है