संवाददाता, दुमका
प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता व अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने कहा है कि जिनको आज अनाज की सबसे ज्यादा जरुरत है, वे ही अनाज से वंचित हो रहे हैं. उनको अनाज प्राप्त करने में कई तरह की परेशानी आ रही है. यह चिंता का विषय है, जबकि सर्वोच्च न्यायालय का आदेश है कि किसी को भी राशन से वंचित न किया जाए.
उक्त बातें उन्होंने दुमका के कुछ पहाड़िया आदिम जनजाति बहुल गांवों का दौरा करने तथा शहर के इंडोर स्टेडियम में भोजन का अधिकार विषयक आदिम जनजातीय क्षेत्रीय सम्मेलन में शिरकत करने के बाद कही.
ज्यां द्रेज ने कहा कि जब वे लोग अमलागढ़ी पहुंचे, तो छह महिलाओं ने उन्हें बताया कि अंगूठा का निशान मैच न करने की वजह से कितनी तकलीफ हुई. इनमें से दो को तो अनाज से ही वंचित रह जाना पड़ा. सरकारी बेवसाइट के आंकड़े का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि अप्रैल महीने में दुमका जिले में ही महज 54 प्रतिशत लोगों तक ही अनाज पहुंच पाया.
उन्होंने कहा कि लक्षित समूह में 9 लाख पीएच सदस्यों को पांच-पांच किलो की दर से तथा 50 हजार अंत्योदय कार्डधारियों को 35-35 किलो की दर से अनाज का वितरण होना था. इस तरह से जहां 62 लाख किलोग्राम अनाज बांटे जाने थे, वहां बंटे महज 34 लाख किलो बांटे गये.
ज्यां ने एक सवाल के जवाब में कहा कि जो खामियां पोस से राशन वितरण में दिखी है, उसे संवेदनशीलता के साथ दूर किया जाय तथा सभी को अनाज की उपलब्धता सुनिश्चित हो, ऐसा प्रयास किया जाना चाहिए. उनके साथ प्रेस कान्फ्रेंस में भोजन का अधिकार अभियान के राज्य समन्वयक अशर्फीनंद प्रसाद, सोना संताल समाज समिति के फादर टॉम, जवाहर मेहता, प्रवाह की बबिता सिन्हा, लाहंति की बिटिया मुर्मू, आदिवासी विकास ट्रस्ट की मेरीनीशा, जोहार के फादर सोलोमन तथा प्रयास के मधुर कुमार सिंह मौजूद थे.