भूमि, संपत्ति और पारिवारिक विवादों को कानूनी रास्ता अपनाने से पहले आपसी सहमति से सुलझाने का प्रयास करना चाहिए. कई बार ऐसे मामले केवल बातचीत और समझौते से हल हो सकते हैं. अदालतों के चक्कर में पड़ने से समय और धन दोनों की हानि होती है. यह सुझाव रविवार को प्रभात खबर ऑनलाइन लीगल काउंसलिंग के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता जया कुमार ने दिया. उन्होंने कहा कि पहले आपसी संवाद और मध्यस्थता के माध्यम से समस्याओं का समाधान तलाशने का प्रयास करना चाहिए. इससे न केवल मानसिक शांति बनी रहती है, बल्कि आर्थिक नुकसान से भी बचाव होता है.
धनबाद से आरएम शर्मा का सवाल :
निचली अदालत ने प्रॉपर्टी के एक मामले में मेरे पक्ष में फैसला दिया था. लेकिन विरोधी पक्ष एक ही आधार पर इसी अदालत से इस केस को तीन बार पुनः बहाल (री-स्टोर) करवा चुका है, जबकि हर बार फैसला मेरे पक्ष में ही आ रहा है. क्या एक ही आधार पर किसी मामले को बार-बार री-स्टोर किया जा सकता है?अधिवक्ता की सलाह :
निचली अदालत ने यदि किसी प्रॉपर्टी विवाद में आपके पक्ष में फैसला दे दिया है, तो सामान्यतः विरोधी पक्ष को उसी मुद्दे पर बार-बार मुकदमा बहाल (री-स्टोर) कराने का अधिकार नहीं होता. कानून में ””””रेस जुडीकेटा”””” का सिद्धांत है, जिसका अर्थ है कि जिस मुद्दे पर एक बार अदालत ने फैसला दे दिया, उसे दोबारा उसी आधार पर उसी अदालत में नहीं उठाया जा सकता. यदि विरोधी पक्ष बार-बार ऐसा कर रहा है, तो यह न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग का मामला बनता है. आप इस विषय को ऊपरी अदालत में चुनौती दे सकते हैं.धनबाद से शांति देवी का सवाल :
बेटी की बीटेक पढ़ाई के लिए 2014 में मैंने बिहार में गया के ग्रामीण बैंक से 2.8 लाख रुपये का एजुकेशन लोन लिया था. लेकिन पढ़ाई पूरी होने के बाद बेटी को नौकरी नहीं मिली. इससे लोन नहीं चुकाया जा सका. अब लोन बढ़कर लगभग पांच लाख रुपये हो गया है. बैंक एकमुश्त सेटलमेंट के लिए दबाव बना रहा है. जबकि मैं किश्तों में पैसा वापस करना चाहती हूं. मैंने लोक अदालत का सहारा भी लिया, लेकिन राहत नहीं मिली. अब मुझे क्या करना चाहिए?अधिवक्ता की सलाह :
बैंक के उच्चाधिकारियों को लिखित में निवेदन करें कि आप किश्तों में बकाया राशि चुकाना चाहते हैं. बैंक अक्सर लिखित अनुरोध पर पुनर्विचार करता है. यदि बैंक समाधान नहीं देता, तो आप आरबीआइ के बैंकिंग लोकपाल के समक्ष शिकायत दर्ज कर सकते हैं. अपने सभी दस्तावेज, जैसे लोन पत्राचार, लोक अदालत की कार्यवाही और बैंक से हुई बातचीत का रिकॉर्ड सुरक्षित रखें. सही संवाद और कानूनी विकल्पों के सहारे समाधान संभव है.धनबाद से पंकज कुमार का सवाल :
मुश्किल समय में दोस्त को बड़ी राशि उधार दी थी. उसने दो साल में राशि लौटाने के लिए एग्रीमेंट किया और पोस्ट डेटेड चेक भी दिया. लेकिन न, तो वह राशि लौटा रहा है और न ही चेक क्लियर हुआ. चेक बाउंस का केस कर दिया है और थाना में 420 धारा के तहत केस भी दर्ज कराया है. अब आगे क्या करना चाहिए?अधिवक्ता की सलाह :
चेक बाउंस के मामले में अदालत में नियमित रूप से उपस्थित रहें. यदि आरोपी समझौते या भुगतान का प्रस्ताव देता है, तो वह अदालत में रिकॉर्ड किया जायेगा. दोषी पाये जाने पर अदालत उसे राशि का दोगुना लौटाने का आदेश दे सकती है. साथ ही सिविल अदालत में ””””रिकवरी सूट”””” दाखिल कर जल्दी निर्णय लिया जा सकता है. थाना में दर्ज 420 के केस से आमतौर पर खास लाभ नहीं होता, क्योंकि ऐसे मामलों में अदालत ज्यादा महत्व नहीं देती.राजगंज से राजेंद्र शर्मा का सवाल :
1995 से संपत्ति विवाद का केस लड़ रहा हूं. अब केस को आगे नहीं लड़ना चाहता. इसे कैसे वापस लिया जाए?अधिवक्ता की सलाह :
आपको अदालत में एक औपचारिक ””””विड्रॉल एप्लिकेशन”””” दाखिल करना होगा. इसमें स्वेच्छा से केस वापस लेने का उल्लेख करें. सामान्यतः एक-दो सुनवाई में मामला समाप्त हो जायेगा.बोकारो से संजय वर्मा का सवाल :
दरभंगा कोर्ट से संपत्ति विवाद में पुराने आदेश की प्रति नहीं मिल रही है, जबकि आरटीआइ के माध्यम से भी प्रयास किया है. इससे बेटे के भविष्य पर असर पड़ रहा है. अब क्या करें ?अधिवक्ता की सलाह :
दरभंगा कोर्ट के रजिस्ट्रार को पत्र लिखकर स्थिति स्पष्ट करें और रिकॉर्ड तलाशने का आग्रह करें. यदि आदेश नहीं मिलता है और इससे वास्तविक नुकसान हो रहा है, तो आप हर्जाने के लिए सिविल सूट भी दाखिल कर सकते हैं.पीरटांड़ से बालदेव महतो का सवाल :
1960 में केवटदार की हैसियत से हमें एक प्लॉट मिला था. अब खतियानी इस जमीन पर दावा कर मकान बना रहे हैं. पुलिस में शिकायत और कोर्ट में याचिका दायर करने के बावजूद काम नहीं रुका है. अब क्या करना चाहिए?अधिवक्ता की सलाह :
तत्काल ”इनजंक्शन सूट” दायर करें. इसके साथ ही क्रिमिनल केस भी दर्ज करायें. एसडीओ या डीसी को आवेदन देकर अवैध कब्जे और निर्माण रोकवाने का अनुरोध करें और राजस्व विभाग से जांच की मांग करें.धनबाद से विनय कुमार का सवाल :
झूठे दुष्कर्म के मामले में फंसाने का प्रयास किया गया था. कोर्ट से बाइज्जत बरी हो चुका हूं. अब मान-सम्मान की भरपाई के लिए क्या कर सकता हूं?अधिवक्ता की सलाह :
अगर आपको को झूठे दुष्कर्म के मामले में फंसाने का प्रयास किया गया हो और आप अदालत से बाइज्जत बरी हो गये हो, तो वह अपने मान-सम्मान की रक्षा के लिए विरोधी पक्ष के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं. आप कोर्ट में मानहानि का आपराधिक मुकदमा कर सकते हैं. इसके साथ ही दीवानी अदालत में क्षतिपूर्ति (मुआवजा) के लिए भी मुकदमा कर सकते हैं.गिरिडीह से संजीत मंडल का सवाल :
पारिवारिक जमीन पर के कुछ हिस्से पर अवैध कब्जा कर लिया गया है और थाना से भी मदद नहीं मिल रही. क्या करें?अधिवक्ता की सलाह :
सिविल कोर्ट में ”पोसेशन सूट” दायर करें और अंतरिम स्थगन आदेश (इंटरिम इनजंक्शन) की मांग करें. साथ ही एसडीओ या डीसी के समक्ष शिकायत करें.बाघमारा से
मंटूकुमार का सवाल :
बड़े चाचा से एक पारिवारिक जमीन को लेकर बंटवारा हो चुका है. वह प्लॉट मात्र 26 फीट चौड़ा है. इसमें से उन्हें 13 फीट चौड़ी जमीन मिल गयी थी. उन्होंने अपने हिस्से पर घर बना लिया है. अब वह हमें अपने हिस्से में घर नहीं बनाने दे रहे हैं. वह मेरे हिस्से की जमीन से रास्ता देने के लिए दबाव बना रहे हैं. पुलिस भी उन्हीं की सुन रही है. क्या करना चाहिए?अधिवक्ता की सलाह :
सबसे पहले, यह सुनिश्चित करें कि बंटवारे का कोई लिखित दस्तावेज या रजिस्टर्ड समझौता है. उसमें रास्ते का उल्लेख नहीं है, तो आपको रास्ता नहीं देना होगा. इसे कोर्ट में प्रस्तुत किया जा सकता है, जिससे आपके हिस्से का अधिकार साबित होता है. दूसरी बात इस तरह के मामलों में पुलिस रास्ता देने का दबाव नहीं बना सकती हैं. क्योंकि ऐसे मामले उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आते हैं.बरवाअड्डा से राजनाथ शर्मा का सवाल :
मैं एक ट्रांसपोर्टर हूं. तीन महीने पहले एक एक व्यक्ति को सर्विस दी थी. इसके साक्ष्य हैं. लेकिन वह किराया नहीं दे रहा है. क्या करना चाहिए ?अधिवक्ता की सलाह :
यदि आपने किसी व्यक्ति को ट्रांसपोर्ट सर्विस दी है, लेकिन वह किराया नहीं चुका रहा है और आपके पास सर्विस के साक्ष्य मौजूद हैं, तो आपको इस मामले में कानूनी कार्रवाई करने का अधिकार है. सबसे पहला कदम यह है कि आप उस व्यक्ति को एक कानूनी नोटिस भेजें. इसमें आप उसे भाड़ा देने की अंतिम तारीख बताएं और उसे कानूनी तौर पर सूचित करें कि यदि वह भाड़ा नहीं चुकाता है, तो आप कानूनी कदम उठाएंगे. अगर नोटिस भेजने के बाद भी वह व्यक्ति भाड़ा चुकता नहीं करता है, तो आप सिविल कोर्ट में धन वसूली का मुकदमा दायर कर सकते हैं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है