पीजी सत्र 2023-25 के छात्र बिना लैब और लाइब्रेरी का लाभ लिए ही अपनी पढ़ाई पूरी कर विश्वविद्यालय से विदा हो गए. आधुनिक उच्च शिक्षा व्यवस्था में जहां प्रैक्टिकल, रिसर्च और संदर्भ पुस्तकों की अहम भूमिका होती है, वहीं बीबीएमकेयू के छात्रों को केवल कक्षाओं और नोट्स के सहारे पढ़ाई करनी पड़ी.
टेंडर हुआ, पर काम नहीं बढ़ा. फर्नीचर बना सबसे बड़ा रोड़ा
लैब और लाइब्रेरी के विकास के लिए अगस्त 2024 में ही टेंडर प्रक्रिया पूरी कर ली गयी थी. उम्मीद थी कि 2025 की शुरुआत तक कम से कम बुनियादी सुविधाएं छात्रों को मिल जायेंगी. लेकिन पूरा मामला एक खास ब्रांड के फर्नीचर को लेकर उलझ गया. उच्च शिक्षा विभाग ने जब लैब, लाइब्रेरी, एकेडमिक और प्रशासनिक भवनों के फर्नीचर से जुड़ी डीपीआर को मंजूरी दी, तो उसमें एक ही ब्रांड का उल्लेख किया गया था. बाद में टेंडर प्रक्रिया के दौरान जेएसबीसीसीएल द्वारा उस ब्रांड में बदलाव कर दिया गया. टेंडर पाने वाली एजेंसी दूसरे ब्रांड का फर्नीचर लेकर विश्वविद्यालय पहुंच गयी. वहीं विवि के अधिकारी इस बात पर अड़ गये कि वे उसी ब्रांड का फर्नीचर स्वीकार करेंगे, जिसका उल्लेख डीपीआर में है. इसी खींचतान में पूरा वर्ष निकल गया. न फर्नीचर लगा, न लैब तैयार हुई और न ही लाइब्रेरी का सपना साकार हो पाया.
छात्रों पर पड़ा सीधा असर. प्रयोग और रिसर्च से दूर रही पढ़ाई
इस प्रशासनिक विवाद का सबसे बड़ा खामियाजा छात्रों को भुगतना पड़ा. विज्ञान, सामाजिक विज्ञान और अन्य विषयों के पीजी छात्रों को प्रयोगशाला कार्य के बिना डिग्री पूरी करनी पड़ी. कई छात्रों का कहना है कि बिना लैब और लाइब्रेरी के पढ़ाई केवल औपचारिकता बनकर रह गई. प्रतियोगी परीक्षाओं, रिसर्च और आगे की पढ़ाई के लिए जरूरी अकादमिक माहौल उन्हें नहीं मिल सका.77 करोड़ रुपये पर मंडरा रहा वापसी का खतरा
स्थिति को और गंभीर बनाता है वह वित्तीय संकट, जो अब सिर उठाने लगा है. विश्वविद्यालय को लैब, लाइब्रेरी के विकास और फर्नीचर की खरीद के लिए कुल 77 करोड़ रुपये की राशि मिली हुई है. यह राशि पिछले दो वित्तीय वर्षों से विवि के खाते में पड़ी है. अधिकारियों के अनुसार यदि मार्च 2026 तक यह कार्य शुरू नहीं हुआ, तो यह पूरी राशि राज्य सरकार को वापस चली जायेगी. ऐसा होने पर लैब, लाइब्रेरी और फर्निशिंग का काम लंबे समय तक अधर में लटक सकता है.
किताबों के लिए पैसा है, अलमारी नहीं
राज्य सरकार ने सेंट्रल लाइब्रेरी के लिए पुस्तकों की खरीद के लिए 4.92 करोड़ रुपये की राशि भी स्वीकृत की है. सभी विभागों की जरूरतों के अनुसार पुस्तकों की सूची भी तैयार हो चुकी है. इसके बावजूद एक भी पुस्तक नहीं खरीदी जा सकी है. वजह साफ है. जब तक लाइब्रेरी का फर्नीचर, रैक और बैठने की व्यवस्था नहीं होगी, तब तक पुस्तकों को रखने और उपयोग में लाने का सवाल ही नहीं उठता.हॉस्टल का सपना भी टूटा. 36 करोड़ रुपये लौटे
साल 2025 में बीबीएमकेयू को एक और बड़ा झटका लगा. विश्वविद्यालय परिसर में सेकेंड फेज हॉस्टल निर्माण के लिए आवंटित 36 करोड़ रुपये की राशि वापस हो गई. यह पैसा दो वित्तीय वर्षों तक विवि के खाते में पड़ा रहा, लेकिन निर्माण कार्य शुरू नहीं हो सका. नतीजतन 31 मार्च 2025 को यह राशि राज्य सरकार को लौट गई. इससे छात्रावास की कमी से जूझ रहे छात्रों की उम्मीदों पर पानी फिर गया.
सवालों के घेरे में व्यवस्था
बीबीएमकेयू में 2025 का पूरा साल यह सवाल छोड़ गया कि आखिर विकास कार्यों में देरी की जिम्मेदारी कौन लेगा. जब पैसा उपलब्ध है, योजनाएं बनी हुई हैं और जरूरत भी साफ दिख रही है, तो फिर फर्नीचर के एक ब्रांड पर अटककर छात्रों का भविष्य क्यों दांव पर लगाया जा रहा है. विश्वविद्यालय के लिए यह जरूरी है कि वह जल्द से जल्द इस गतिरोध को खत्म करे, ताकि आने वाले सत्रों के छात्र उसी इंतजार और निराशा का शिकार न हों, जिससे 2025 के छात्र गुजर चुके हैं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

