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टीबी की दवा की कमी, हर सप्ताह मरीजों की आना पड़ रहा अस्पताल

भारत सरकार ने दिसंबर 2025 तक देश को टीबी मुक्त करने का लक्ष्य रखा है, लेकिन जिले के टीबी मरीजों को आसानी से दवा नहीं मिल पा रही है. उन्हें एक बार में एक सप्ताह की ही दवा दी जा रही है. इस कारण दूर-दूर से आने वाले मरीजों को अधिक परेशानी हो रही है.

संवाददाता, देवघर : भारत सरकार ने दिसंबर 2025 तक देश को टीबी मुक्त करने का लक्ष्य रखा है, लेकिन जिले के टीबी मरीजों को आसानी से दवा नहीं मिल पा रही है. उन्हें एक बार में एक सप्ताह की ही दवा दी जा रही है. इस कारण दूर-दूर से आने वाले मरीजों को अधिक परेशानी हो रही है. उन्हें दवा लेने के लिए हर सप्ताह जिला यक्ष्मा कार्यालय आना पड़ रहा हे. यह समस्या बीते करीब एक साल से पूरे देश में है. इतना ही नहीं टीबी के मरीजों को बाहर दवा दुकानों, प्राइवेट अस्पताल या क्लिनिक पर भी दवा नहीं मिल पा रही है. स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, जिले में वर्तमान में टीबी के 2284 मरीज हैं, जिसका इलाज चल रहा है. इसके अलावा स्वास्थ्य विभाग की ओर से नये टीबी मरीजों की खोज की जा रही है, ताकि दिसंबर 2025 तक देश को टीबी मुक्त किया जा सके.

मरीजों को एक सप्ताह की ही दी जाती है दवा

स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, जिले में वर्तमान में 2284 टीबी मरीज हैं, जिनका सरकारी स्तर पर इलाज चल रहा है. इसमें सभी मरीजों को पर्याप्त दवा उपलब्ध कराना स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी है. दरअसल, केंद्रीय स्वास्थ्य विभाग की ओर से पर्याप्त मात्रा में दवा उपलब्ध नहीं है. ऐसे में बाहर जाने वाले मरीजों को पर्याप्त दवा नहीं मिलने के कारण मरीजों को काफी परेशानी होती है. ऐसे में मरीजों को खुद से बाहर से दवाओं का इंतजाम करना पड़ता है, लेकिन यह दवा बाहर भी नहीं मिलती है. ऐसे में मरीजों को काफी परेशानी होती है. यदि कोई मरीज बाहर जाता है, तो उसकी दवा छूट जाती है, जबकि किसी भी शर्त पर टीबी की दवा को छोड़ना नहीं होता है. एक मरीज ने बताया कि टीबी की दवा को लेकर बीते साल से काम करने भी नहीं जा पा रहे हैं. हर सप्ताह दवा लेने आना पड़ता है. इसके लिए दो दिन पहले से ही कार्यालय आना पड़ता है. वहीं यदि कार्यालय बंद हो गया, तो परेशानी हो सकती है. जबकि एक साल पहले तीन से छह माह की दवा दे दी जाती थी. अभी एक सप्ताह से अधिक दिन की दवा नहीं दी जाती है.

छह से लेकर 18 माह तक चलती है दवा

स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, टीबी के मरीज दो तरह के होते है, जिनमें डीएस टीबी और एमडीआर टीबी शामिल हैं. एमडीआर को टीबी के गंभीर मरीजों में गिना जाता है. विभाग के अनुसार, डीएस टीबी के मरीजों को छह माह तक दवा खिलायी जाती है, जबकि एमडीआर टीबी के मरीजों को नौ माह से लेकर 18 माह तक दवा खिलायी जाती है. विभाग के अनुसार पहले मरीजों को चार प्रकार की दवा दी जाती थी, इसमें रिफामपसिन, इथीम्बीटॉल, आइएनएच और पायराजिनामाइट है. इसके बाद वर्तमान में चारों दवाओं काे मिलकर एक कॉम्बीपैक की दवा दी जाती है.

क्या कहते हैं पदाधिकारी

विभाग की ओर से पर्याप्त मात्रा में दवा उपलब्ध नहीं करायी जा रही है, इस कारण मरीजों को भी परेशानी होती है. किसी भी मरीज की दवा छूटे नहीं, इसलिए एक- एक सप्ताह के लिए दवा उपलब्ध करायी जा रही है. जरूरत पड़ने पर लोकल स्तर पर खरीददारी कर मरीजों को दवा उपलब्ध करायी जाती है.

डॉ युगल किशोर चौधरी, जिला आरसीएच पदाधिकारी सह प्रभारी सीएस

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– टीवी मरीजों को किसी भी शर्त पर नहीं छोड़नी है दवा

– अधिक दिन की दवा नहीं मिलने से बाहर नहीं जा पाते मरीज

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