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प्रश्न बता रहे सरकारी स्कूलों में शिक्षा की हकीकत
देवघर : प्रतिस्पर्धा के इस दौर में सरकारी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण पढ़ाई का दावा सरकार करती है, लेकिन सरकारी स्कूलों में कक्षा एक व दो के वार्षिक सतत एवं समग्र मूल्यांकन (सत्र 16-17) में गणित विषय में जिस प्रकार का सवाल पूछा गया है. वह अंगरेजी माध्यम के प्राइवेट स्कूलों में पूछे जाने वाले सवालों […]
देवघर : प्रतिस्पर्धा के इस दौर में सरकारी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण पढ़ाई का दावा सरकार करती है, लेकिन सरकारी स्कूलों में कक्षा एक व दो के वार्षिक सतत एवं समग्र मूल्यांकन (सत्र 16-17) में गणित विषय में जिस प्रकार का सवाल पूछा गया है. वह अंगरेजी माध्यम के प्राइवेट स्कूलों में पूछे जाने वाले सवालों की तुलना में कहीं नहीं टिकता है. यहीं नहीं मूल्यांकन परीक्षा में बच्चों से मौखिक में ही जवाब पूछा जाता है. फिर सवाल उठता है कि क्या बच्चों को लिखना भी आता है या नहीं. कई सवाल ही सरकारी स्कूलों व प्राइवेट स्कूलों के बच्चों की शिक्षा के बीच विभेद पैदा करता है. जबकि प्राइवेट स्कूलों के सिलेबस को देखे तो उसका अलग स्टैंडर्ड होता है. यही नहीं बच्चों की आइक्यू में भी काफी अंतर देखने को मिलता है.
एक्सपर्ट की मानें तो प्राइवेट स्कूलों में कक्षा एक एवं दो में गणित विषय में पूछे जाने वाले सवालों में दो, तीन एवं चार अंकों का जोड़, घटाव, गुणा के साथ-साथ वाक्य में जवाब देना अनिवार्य होता है. वहीं सरकारी स्कूलों में एकदम साधारण प्रश्न पूछा जा रहा है. गुणवत्तापूर्ण शिक्षण का दावा करने वाली सरकार आखिरकार इंफ्रास्ट्रक्चर, मैनपावर, संसाधन आदि पर हर वर्ष करोड़ों रुपये खर्च करती है. लेकिन, प्रतिस्पर्धा के इस दौर में प्राइवेट स्कूलों के मुकाबले सरकारी स्कूलों के लाखों-लाख बच्चे कहीं नहीं ठहरते हैं. किसी प्रकार माध्यमिक परीक्षा उत्तीर्ण कर लिया तो वो आगे की पढ़ाई में सफल नहीं हो पाते हैं. आखिरकार बुनियादी जब इतनी कमजोर है तो भविष्य क्या होगा. इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है.
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