सरकार की ओर से मिलने वाला आवास भी नहीं मिल पा रहा है. छठ पूजा में इनके द्वारा बनाये गये सूप-डाला भी छठ में प्रयोग किया जाता है. इस बार कच्चा बांस महंगा हो गया है. पूंजी के अभाव में उधारी में बांस लेकर ये सूप व डाला बना रहे हैं. उधार लेने पर इन्हें कुछ महंगा दाम देना पड़ रहा है. इनका बनाया हुआ सामान दूर दूर तक जाता है. इनका कहना है कि यदि सरकार से मदद मिल जाये तो उनकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो सकेगी.
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बांस कारीगरों के लिए जीवन निर्वाह करना मुश्किल
देवीपुर: छठ पर्व में बांस के बरतन व अन्य सामानों का महत्व बढ़ जाता है. बांस के सूप, दौरा, सुप्ती आदि के बिना इस महापर्व में सबकुछ अधूरा हो जाता है. लेकिन यही सामग्री बनाने वाले आज बदहाल हैं. प्रखंड में मोहली जाति की लगभग 300 परिवार की अच्छी खासी आबादी बांस के सामान बनाती […]
देवीपुर: छठ पर्व में बांस के बरतन व अन्य सामानों का महत्व बढ़ जाता है. बांस के सूप, दौरा, सुप्ती आदि के बिना इस महापर्व में सबकुछ अधूरा हो जाता है. लेकिन यही सामग्री बनाने वाले आज बदहाल हैं. प्रखंड में मोहली जाति की लगभग 300 परिवार की अच्छी खासी आबादी बांस के सामान बनाती है. परिवार के लगभग सभी सदस्य बच्चे से लेकर बड़ों तक इनमें महिलाएं भी शामिल है जो दिन भर बांस को आकार देने में लगी रहती है. दिन भर काम करने के बाद भी इनके लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना मुश्किल भरा हो रहा है.
आज भी मिट्टी की झोपड़ी में सुविधाओं के बगैर इनके सपने दम तोड़ रहे हैं. ना ही बच्चों को अच्छी शिक्षा दे पा रहे हैं और ना ही जरूरतें पूरी हो पाती है. कामेश्वर मोहली, केवलाश मोहली, हरि मोहली, झारी मोहली, दामोर मोहली आदि ने बताया कि सरकार से मदद भी नहीं मिल रही है. कई बार सरकारी दफ्तर के चक्कर काट चुके हैं, लेकिन आश्वासन के सिवाय कुछ नहीं मिलता. सड़क किनारे व अपनी झोपड़ी के आगे बैठकर सूप, डलिया आदि बनाने में मग्न रहते हैं. लगभग सौ वर्षों से यह समाज अपनी पुश्तैनी धंधे में लगे हुए हैं.
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